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________________ चरित्र-योजना १८५ भाई ! मुझे राज्य नहीं चाहिए । जब राम उन्हें समझाते हुए अपनी आज्ञा सुना देते हैं तब भरत मौन और उदासीन भाव से उनकी आज्ञा को शिरोधार्य कर लेते हैं । वन के बीच में भरत और राम के संवादों से भरत के कोमल, निश्छल और पवित्र हृदय का पता चलता है। उनके चरित्र में कहीं भी कोई दुर्बलता दिखायी नहीं देती। हनुमान् 'सीता चरित' में हनुमान् का चरित्र राम के हितैषी, कृपापात्र और प्रियजन के रूप में चित्रित हुआ है। दोनों की प्रीति, उत्साह, सौहार्द्र बड़े भाव से सम्पृक्त है। दोनों का अगाध प्रेम अवर्णनीय है। उसकी थाह तो कोई प्रेमी-हृदय ही ले सकता है । राम चन्द्रमा हैं और हनुमान् वृहस्पति ।। वे दृढ़प्रतिज्ञ और दूरदर्शी हैं। उनके संकल्प भाव की पुष्टि लंका को प्रयाण करते समय राम से कहे गये वचनों से होती है। वहाँ जाते समय राम से सीता के लिए कुछ निशानी लेने का निवेदन करने में उनकी प्रज्ञाशीलता और दूरशिता का प्रमाण मिलता है। आगे चलकर वे एक सुन्दरी के प्रेमपाश में बँध जाने पर अपनी प्रतिज्ञा और कर्तव्यशीलता को नहीं भूलते । वे सदैव धर्म-पक्ष की विजय के अभिलाषी और सत्य-पथ के अनुयायी हैं। १. सीता चरित, पद्य ४१६, पृष्ठ २७ । २, वही, पद्य ४५६ से ४६२, पृष्ठ २८ । ३. हनुमान अरु रामजी, करी प्रीति अतिरंग। हिरदै मांहि उछाह सौं, पूरन भाव अभंग ॥ -सीता चरित, पद्य १२२७, पृष्ठ ६६ । ४. वही, पद्य १२२८-२६, पृष्ठ ६६ । ५. वही, पद्य १२२६-३०, पृष्ठ ६६ । ६. वही, पद्य १२६४-६५, पृष्ठ ७० । ७. वही, पद्य १२७६ से १२७८, पृष्ठ ६७ ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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