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________________ चरित्र-योजना १८३ वे सच्चे भाई हैं । लक्ष्मण और भरत के प्रति उनका सहज स्नेह अनुपम है । वे प्रजावत्सल राजा हैं। प्रजा को पुत्रवत् स्नेह देना, उसकी सुखसुविधा का ध्यान रखना और उसकी भावना का आदर करना उन्हें प्रिय है।' सीता-हरण के उपरान्त राम मोहादि से भी अभिभूत होते हुए दिखायी देते हैं । हनुमान लंका से लौटने पर जब राम को सीता की कुशलता का संदेश सुनाते हैं तब राम एक ही बात को अनेक बार सुनने की अभिलाषा करते हैं। रावण के शक्तिबाण से जब लक्ष्मण घायल हो जाते हैं तब हम राम को अधीर होता हुआ पाते हैं। कवि के अनुसार राम-रावण युद्ध में राम की विजय असत्य पर सत्य की और अनात्मभावों पर आत्मभावों की विजय है। राम के चरित्र के परिप्रेक्ष्य में कवि को इसी लक्ष्य का उद्घाटन अभिप्रेत है। लक्ष्मण लक्ष्मण का चरित्र भी 'सीता चरित' के अतिरिक्त अन्य किसी काव्य में नहीं मिलता। उनके चरित्र की महत्ता का कारण राम का साहचर्य है । वे सदैव छाया की भाँति राम के साथ-साथ चलते हैं । दोनों का सामूहिक प्रभाव अमोघ है। वे राम के प्यारे भाई ही नहीं हैं वरन् उनके सच्चे सेवक और भक्त भी हैं। उनका व्यक्तित्व अधिकांश स्थलों पर राम के व्यक्तित्व में तिरोहित सीता चरित, पद्य ३६, पृष्ठ ३६ । वही, पद्य ३६, पृष्ठ ३६ । वही, पद्य १४६२ से १५००, पृष्ठ ८३ । चले महाकानन विसतार । सबै जीव अति ही भयकार ।। तिन देष धीरज नहिं रहै । अति भै मानि पंथ नहिं बहै ।। तहां राम हरि कियौ प्रवेस । भये सिंघ गज भजि लघु वेस । -वही, पद्य ८०८-८०६, पृष्ठ ४५ । ५. वही, पद्य ४६६, पृष्ठ २६ ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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