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प्रबन्धत्व और कथानक - स्रोत
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चित अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग, विजयोल्लास आदि से सम्बद्ध अनेक दृश्यों को ठीक विधि से निरूपित किया गया है । "
'शीलकथा' के अधिकांश वर्णन संक्षिप्त और चलते हुए हैं । उनमें कवि की दृष्टि संश्लिष्ट चित्र प्रस्तुत करने में असमर्थ रही है । फिर भी कतिपय दृश्य चित्रात्मक हैं :
अति विकट अरण्य मंझार | बैठी कोमल अंग सुनार 1 हां तो वृक्ष सघन अति होय । हाथों हाथ न दीखे कोय ॥ कहीं सिंहगन करत डकार । कहूं नाग फुंकरत अपार । रोज रीछ दल फिरते घने । ताको भय जो कहत न बने ॥ गुफा कहीं पातालमंझार । कहूं गिर ऊंचे अति अधिकार ।
'नेमिनाथ मंगल' काव्य में वर्णनों का प्राचुर्य है । ये वर्णन कोरे वर्णन नहीं हैं । इन वर्णनों में लोक तत्त्व अपने पूरे सौन्दर्य के साथ उभर कर आया है | हमारा हृदय इनमें रमता है और मुग्ध हो उठता है । विवाहविषयक कतिपय चित्र प्रस्तुत हैं :
१.
हां । अरी फूलन की पारि झारी हां ॥ अरी मषमल के जीन बनाये हां । अरी कुंदन सो जरित जराये हां ॥
(क) अरी अब घोरे सरस बनाये
(क) चेतन कर्म चरित्र, पद्य ४२, पृष्ठ ५६ । (ख) वही, पद्य १६५, पृष्ठ ७१ ।
(ग) वही, पद्य १६८-६६, पृष्ठ ७२ ।
२. भ्रमतो भ्रमतो वह आयो । सब कौशल देश मंझायो || नगरी विजयंती मांही। आयो ततछिन सो तहांही ॥ तह देखि नगर सुखकारी । मनो स्वर्गपुरी अवतारी ॥ eg मानिक मोती झलकें । कहुँ मोतिन झालर झलकें ॥
वही, पृष्ठ ३६-३७ 1
- शीलकथा, पृष्ठ ७ ।