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________________ १५६ जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन स्थलों पर हुआ है। ऐसे वर्णनों से जहाँ एक ओर वस्तु की समुचित गति में योग मिला है, वहाँ दूसरी ओर काव्य का अन्तः एवं बाह्य-दोनों प्रकार का सौन्दर्य द्विगुणित हुआ है । छद्मवेषी साधु का वर्णन अवलोकिये : भसमी जंग लगाय कै, जतनी कंथा धारि । भांग पीय करि घूमतो, पाखंड्या सरदारि ॥ उसमें अन्यान्य अनेक वर्णनों का विनिवेश है। वृद्धावस्था, जन्मोत्सव, गुरु, मुनि, संयोग-वियोग, पाप-पुण्य, काम-भोग, विराग, हिंसा-अहिंसा, संसार की नश्वरता, तप आदि के वर्णन देखे जा सकते हैं। इनके अतिरिक्त 'चेतन कर्म चरित्र,' 'नेमिब्याह,' 'पंचेन्द्रिय संवाद', 'मधुबिन्दुक चौपई', 'शीलकथा', 'राजुल पच्चीसी', 'नेमिनाथ मंगल', 'नेमिचन्द्रिका' (आसकरण), 'सूआ बत्तीसी', 'नेमिचन्द्रिका' (मनरंगलाल) प्रभृति खण्डकाव्यों में नियोजित दृश्य प्रायः लावण्यमयी हैं। 'नेमिब्याह' में दुलहा नेमिनाथ के रूप शृंगार-माधुर्य का यह चित्र कितना सटीक है । इसकी चित्रात्मक शक्ति स्पृहणीय है : मोर धरौ दूलह के कर कंकण बांध दई कस डोरी । कुडल कानन में झलकें अति भाल में लाल विराजत रोरी ॥ मोतिन की लड़ शोभित है छबि देखि लजें वनिता सब गोरी ।। लाल विनोदी के साहिब के मुख देखन को दुनिया उठ दौरी ॥ 'चेतन कर्म चरित्र' में युद्धविषयक अधिक वर्णनों का समावेश हुआ है । युद्ध का कारण, दूत-कार्य, मंत्रणा, समर-तैयारी, विजय-लालसा, मोर्चा, रण-तूर्य-वादन, चक्रव्यूह-रचना, रणनीतिविज्ञ वीरों का उत्साह, अवसरो १. यशोधर चरित, पृष्ठ ६ । २. नेमिब्याह ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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