SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२८ जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन आदि और अन्त के बीच में कथानक की धारा को लेकर चलता है। उसमें कवि की दृष्टि कथा-सूत्र और प्रसंगों के पूर्वापर क्रम-निर्वाह पर केन्द्रित रहती है । प्रसंगों के पूर्वापर निर्वाह के बिना कथा भग्न होती हुई प्रतीत होती है । प्रबन्ध की कथा-धारा आदि से अन्त तक की यात्रा में कहीं खंडित न हो, इस बात पर जिस कवि की बराबर दृष्टि रहती है, वही सफल प्रबन्ध-रचना के पुण्य का भागी बन सकता है । थोड़ी चूक से यदि कथा-प्रवाह कहीं खंडित हो जाता है तो प्रबन्धकाव्य की गरिमा को बड़ा भारी धक्का लगता है। प्रबन्धकाव्य में आधिकारिक कथावस्तु के साथ प्रासंगिक कथा वस्तुएँ भी हो सकती हैं जिनकी योजना मूलत: मुख्य कथावस्तु के साथ तालमेल बैठाकर उसकी गति को योग देने और गन्तव्य स्थान की ओर बढ़ाने के लिए की जाती है। यदि प्रासंगिक वस्तु मुख्य कथा-प्रवाह में सहायक नहीं होती तो उसके अन्तर्गत जो वृत्तान्त रखे जायेंगे, वे असम्बद्ध होंगे और वे ऊपर से व्यर्थ ठुसे हुए मालूम होंगे, चाहे उनमें कितनी ही रसात्मकता हो।' अवान्तर कथाओं के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के उपाख्यानों में (जिनका समावेश महाकाव्य में ही अच्छी प्रकार हो सकता है) विभिन्न प्रकार के चरितों और दृश्यों की योजना से काव्य में गाम्भीर्य और गुरुत्व की वृद्धि होती है और साथ ही पाठकों-श्रोताओं की औत्सुक्य-शान्ति और विश्रान्ति भी प्राप्त होती है। प्रबन्धकाव्य के रचयिता के सामने एक महत्त्वपूर्ण कार्य और उद्देश्य होता है । इसी हेतु वह एक महत्त्वपूर्ण (काल्पनिक अथवा प्रख्यात) इतिवृत्त चुनता है । इस इतिवृत्त की सफलता कार्य की सिद्धि में होती है। अतः १. डॉ० सरनामसिंह शर्मा 'अरुण' : साहित्य-सिद्धान्त और समीक्षा, पृष्ठ २. डॉ० सरनामसिंह शर्मा 'अरुण' : साहित्य-सिद्धान्त और समीक्षा, पृष्ठ ७३ । ३. डॉ० शम्भुनाथ सिंह : महाकाव्य का स्वरूप-विकास, पृष्ठ ७६ ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy