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________________ १११ परिचय और वर्गीकरण मोक्ष आदि का निरूपण हुआ है और उनमें स्थल-स्थल पर विरागमूलक गीतों की प्रतिध्वनि गूज रही है । उनमें दार्शनिक एवं आध्यात्मिक तत्त्वों का अन्तर्भाव इस प्रकार हुआ है कि वह मात्र दार्शनिक या आध्यात्मिक विवेचन न रहकर काव्य का एक अभिन्न अंग बन गया है। लगता है जैसे दर्शन एवं अध्यात्म का ऊर्ध्वगामी संसार मंगलोन्मुखी रूप लेकर ही काव्य के रूप में इस धरती पर उतर आया है। वस्तुतः इस प्रकार के काव्यों में आत्म एवं अनात्म भावों, आत्मा की विविध अवस्थाओं, शुद्ध आत्म-तत्त्व की उपलब्धि, प्रवृत्ति और निवृत्ति आदि की बड़ी सुन्दर अभिव्यंजना है। उनमें शुद्धात्मा और संसारी अशुद्धात्मा के प्रसंग को उपस्थित कर आध्यात्मिक बोध के साथ लौकिकता का अक्ष ण्ण सम्बन्ध बनाये रखने का प्रयास निहित है। उनके प्रणेताओं ने उनमें आध्यात्मिक अनुभूति की सचाई को बड़ी मार्मिकता से व्यक्त किया है । उनकी आध्यात्मिक भावना ने हृदय को समतल पर लाकर भावों का सारसमन्वय उपस्थित किया है। जीवन के सुख-दु:ख, हर्ष-विषाद, आकर्षणविकर्षण को दार्शनिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत करने में मानव भावनाओं का गहन विश्लेषण किया गया है। प्रस्तुत द्वारा अप्रस्तुत का विधान साधारण छोटी-छोटी आख्यायिकाओं में किया गया है । उपयुक्त विषय से सम्बद्ध रचनाओं में 'चेतन कर्म चरित्र', 'शतअष्टो त्तरी', 'पंचेन्द्रिय संवाद', 'मधु बिन्दुक चौपई', 'सूआ बत्तीसी' आदि उल्लेखनीय हैं। इन काव्यकृतियों की सामान्य प्रवृत्तियाँ अधोलिखित हैं : (१) मूलतः इनका विवेच्य विषय दर्शन या अध्यात्म रहा है । (२) दर्शन या अध्यात्म के तत्त्वों का मानवीकरण कर अमूर्त भावों देखिए-डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री : हिन्दी जैन साहित्य परिशीलन (भाग१), पृष्ठ १३८ ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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