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कविवर बनारसीदास
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उनकी भावभंगी और मुख मुद्रा ने उनका सहयोग नहीं दिया अंत में असली घात प्रकट हो गई बनावट का परदा स्थिर नहीं रह सका कविवर ने सरल भाव से अपने कष्ट और असफलता की सारी कथा सुनादी । पतित्रता पत्नी ने उन्हें धैर्य देते हुए कहा । समय पाय के दुख भयो, समय पाय सुख होय । होनहार सो ह्र रहे, पाप पुण्य फल होय |
पत्नी के इस प्रेम भरे अश्वासन से कविवर को बड़ी संतुष्टि हुई वे अपने संपूर्ण कष्टों को भूल गए इसी समय पत्नी ने पति के करकमल में २०) लाकर अपनी तुच्छ भेंट समर्पित करते हुए बड़ी नम्रता से कहा ।
यह मैं जोरि धरे थे दाम | आये आज तुम्हारे काम ॥ साहिब चिन्त न कीजे कोय । 'पुरुप जियै तो सब कुछ होय' ।।
पत्नी के मुंह से निकला हुआ अंतिम पद कितना हृदयग्राही है ऐसी सुशीला पत्नी किसी विरले ही भाग्यवान को प्राप्त होती है । उस वन्दनीय स्त्री की तृप्ति इतने में ही नहीं हुई । उसने दूसरे दिन एकान्त पाकर अपनी माता की गोद में सिर रख दिया और फूट फूटकर रोने लगी । वह पति की आर्थिक श्रावस्था के शोक से व्यथित अपने हृदय को माता के साम्हने रखते हुए बोली
जननी ! मेरी लज्जा व तेरे हाथ है। यदि तू सहायता न करेगी तो प्राणपति न मालूम क्या कर बैठेंगे । वे इतने