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कविवर बनारसीदास
निकसी थोथी सागर मथा, भई हींग वाले की कथा; लेखा किया रूख तल बैठि, पूँजी गई लाभ में पैठि ।
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इस कार्य में कुछ लाभ हुआ न देखकर उन्होंने इसे छोड़ दिया और एक नरोत्तमदास नामक व्यक्ति के साथ खैराबादी कपड़े का व्यापार किया उसमें आपने काफ़ी उद्योग किया; परन्तु अन्त में हिसाव किया तो मूल और व्याज देने के बाद ४) घाटे में रहे। किन्तु उद्योगशील बनारसीदास जी व्यापार से घबड़ाए नहीं कुछ दिन के बाद ही दोनों मित्रों ने पटना आदि स्थानों पर व्यापार के लिए गमन किया और छ: सात माह तक पूर्ण परिश्रम के साथ उद्योग किया किन्तु उसमें भी आपको कुछ भी लाभ नहीं हुआ तब अन्त में उन्होंने साझे का व्यापार छोड़कर प्रथक् दूकान की। छः वर्ष की कठिनाइयों को सहन करने और घाटा पर घाटा सहने के पश्चात् उनके भाग्य का सितारा चमका | व्यापार में उन्हें काफी लाभ होने लगा और कुछ समय में ही उन्होंने अच्छा द्रव्य संचय कर लिया अब वे आनन्द सहित. आग में ही रहने लगे ।
व्यापारिक कठिनाइएँ.
उस समय रेल आदि के न होने से व्यापार कार्य गाड़ियों तथा पैदल यात्रा द्वारा ही होता था। पुलिस तथा राज्य का उचित प्रबंध न होने के कारण व्यापारियों को अनेक कठिनाइयों का साम्हना
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