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प्राचीन हिन्दी जैन कवि
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शुष्क अध्यात्मवाद। - आगरे में उस समय अर्थमल्लजी नामक एक सज्जन रहते थे आप अध्यात्म रस के बड़े रसिक थे। वे कविवर के निकट आकर उनकी कविताओं को सुना करते थे कविवर की. विलक्षण काव्य शक्ति देखकर वे बड़े प्रसन्न होते थे। वे चाहते थें कि कविवर अधात्मिक विपय की ओर आएं और अध्यात्म विषय पर कविता करें। एक समय उन्होंने कविवर के लिए नाटक समयसार नामक ग्रंथ अध्ययन के लिए दिया। कविवर की बुद्धि इस परम अध्यात्मिक ग्रंथ को पढ़कर दंग रह गई उन्होंने उस ग्रंथ का कई वार अध्ययन किया परंतु वे उसके वास्तविक रहस्य को प्राप्त नहीं कर सके वे शुष्क आध्यात्मवाद में गोते लगाने लगे। वाह्य क्रियाओं को उन्होंने बिलकुल तिलांजलि देदी। जप,. सामायिक, प्रतिक्रमण आदि सभी कार्य वे एक दम छोड़ बैठे। वे इन सभी क्रियाओं को केवल मात्र ढोंग समझने लगे उनके । विचार यहाँ तक परिवर्तित हुए कि वे भगवान को चढ़ाया हुआ नैवेद्य भी खाने लगे। इस समय उनके तीन साथी और भी हो गए। वे भी कविवर के समान ही आचरण करने लगे। यह चारों.एकान्त में बैठकर केवल अध्यात्म की चर्चा करने में ही अपना.कालक्षेप करते । व्यवहार, धर्म, वर्ण जाति आदि की . खिल्लियां उड़ाना ही. इनकी चर्चा का मुख्य ध्येय था। इनकी उस समय यही दशा थी।
नगन होहिं चारों जनें, फिरहि कोठरी माँहिं । कहहिं भये मुनिराज हम, कछु परिग्रह नाहि ।