SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 203
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भारतवर्षीय जैन-साहित्य सम्मेलन दमोह, सी० पी० 'ज्ञान समान न श्रान जगत में सुख का कारण [कविवर दौलततराम ] संसार में ज्ञान के समान सुख देनेवाला कोई पदार्थ नहीं है। वह ज्ञान जिनवाणी अथवा जैन-साहित्य के द्वाराही मिलता है। श्री जिनेन्द्रदेव की वाणी ही जैन-साहित्य है और वह तीर्थंकर के समान ही महान पूज्य है। वर्तमान में जिनवाणी के उद्धार की अत्यन्त आवश्यकता देखकर उसका उद्धार करने और जैनवाणी का सारे संसार में प्रचार करने के उद्देश्य से ही भारतवीय-जैन-साहित्य सम्मेलन स्थापित किया गया है। सर्व प्रकार के पक्षपात से रहित होकर जिनवाणी का प्रचार करना और जैन धर्म को संसार के कोने कोने में पहुँचा देना ही इसका लक्ष्य है। इसके निम्न लिखित मुख्य कार्य हैं । १. प्राचीन जैन भंडारों की सूची तैयार करना। २. प्राचीन अप्राप्त जैन ग्रंथों की खोज करना। ३. प्राकृत तथा संस्कृत के उपयोगी ग्रंथों का संशोधन तथा सरल भापा में अनुवाद करना। ४. प्राचीन जैन आचार्यों तथा लेखकों का इतिहास तैयार करना और उनके लिखे उपयोगी साहित्य का प्रकाशन करना।
SR No.010269
Book TitleJain Kaviyo ka Itihas ya Prachin Hindi Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherJain Sahitya Sammelan Damoha
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy