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________________ १७८ प्राचीन हिन्दी जैन कवि W पुण्य जव खसि जाय परयो परयो विललाय, पेट हूं न भरयो जाय पाप उदै तनमें। ऐसी ऐसी भांति की अवस्था कई धरै जीव, जगत के वासी लख हँसी आवै मन में ॥ मद भरे हाथी आगे २ चल रहे हैं और पीछे बलवान् फौज सजी हुई है जिसे देखते ही शत्रु डर कर जंगलों जंगलों घूम रहे हैं। ऐसी शक्ति जिसके साथ है और जिसका रूप कामदेव के समान सुन्दर है जिसको चतुरंगी सैना को देखकर लोग धन्य धन्य कहते हैं। उस महा शक्तिशाली पुरुप का पुण्य जिस समय क्षीण हो जाता है तब वह जमीन पर पड़ा हुआ तड़पता रहता है और पेट भी मुश्किल से भरा जाता है। संसार में पुण्य पाप के उदय से इस तरह की अनेक अवस्थाएं बदलने वाले इन प्राणियों को देख कर आत्म ज्ञानी को मन में बड़ी हँसी आती है। जिन धर्म पचीसिका इसमें जैन धर्म के महात्म्य का वर्णन २५ छन्दों में वर्णन किया है। जैन धर्म की सुन्दर शिक्षा सुनिए। सुन मेरे मीत तू निचित है के कहा बैठो, तेरे पीछे काम शत्रु लागे अति जोर हैं। छिन छिन ज्ञान निधि लेत अति छीन तेरी, डारत अँधेरी भैया किए जात भोर हैं। जागवो तो जाग अव कहत पुकार तोहि, ज्ञान नैन खोल देख पास तेरे चोर हैं। फोर के शकत निज चोर को मरोर बांधि, तोसे बलवान आगे चोर बैंक को रहें ।
SR No.010269
Book TitleJain Kaviyo ka Itihas ya Prachin Hindi Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherJain Sahitya Sammelan Damoha
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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