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भैया भगवतीदास
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अज्ञान की घोर घटा को फाड़कर, तड़ाक से ही बंधन को काटकर हृदय में शुद्ध चैतन्य को धारण कर उसी की रट लगाने लगा।
शुद्ध आत्म अमृत का पानकर, पर पदार्थों को हटाकर अपने स्थान में मग्न होकर सटाक से शिव रमणी को प्राप्त कर लिया।
संसार में अनेक प्रकार के भेष धारण कर बहुत से लोग भटकते फिरते हैं वे सच्चे साधु नहीं हैं इसका अलंकारिक वर्णन देखिए । कोऊ फिरें कनफटा, कोऊ शीप धरै जटा,
फोऊ लिए भस्म घटा भूले भटकत हैं। फोऊ तज जाहिं अटा, कोऊ धेरै चेरी चटा,
कोऊ पढ़े पटा कोऊ धूम गटकत हैं। कोऊ तन लिए लटा, कोऊ महा दीसै कटा,
फोऊ तर तटा कोऊ रसा लटकत हैं। भ्रम भाव ते न हटा, हिये काम नहीं घटा, .
विप सुख रटा साथ हाथ पटकत हैं।
कोई कानों को फाड़कर फिरते हैं कोई शिरपर जटा रखाते हैं और कोई भस्म रमाए हुए आत्म ज्ञान से भूले हुए भटकते हैं। - कोई मकान छोड़कर जंगलों में जाते हैं, कोई चेला चेली मूड़ते हैं कोई औंधे पड़े रहते हैं और कोई धुए को गटकते हैं। ___ कोई शरीर को सुखाते हैं, कोई मस्त पड़े हैं कोई वृक्ष के नीचे आसन जमाए हुए हैं और कोई जटाओं से लटक रहे हैं।