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भैया भगवतीदास
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श्रखनि रूप निहारि केरे, दीप परत है देख प्रगट पतंग को रे, खोवत अपनो काय ॥ रसनारस मछ मारियो रे, दुर्जन कर विश्वास । यातै जगत विगूचियो रे, सह्रै नरक दुखवास ॥ फरसहि ते गज बसपरचोरे, बँध्यो साँकल तान । भूख प्यास सब दुख सह रे, किंहविध कहहिं बखान ॥ मन राजा कहिए बड़ो रे, इन्द्रिन सरदार | आठ पहर प्रेरित रहे रे, उपजै कई विकार ॥ इन्द्रिन तैं मन मारिये रे, जोरिये श्रातम माँहि । तोरिये नाँतो राग सों रे, फोरियेदल शिवजाँहि ॥ निकट ज्ञान हग देखतें, विकट चर्महग होय । चिकट कटै जव राग की, प्रगट चिदानन्द होय ॥
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कुपंथ सुपंथ पचीसिका
कुपंथ क्या है और सुपंथ क्या है इसे २५ छन्दों द्वारा घतलाया है ।
देव और ग्रन्थ की परीक्षा किए बिना श्रात्म ज्ञान से रहित ज्ञानी संत्य को नहीं पा सकते ।
देह के पवित्र किए श्रातमा पवित्र होय,
ऐसे मूढ़ भूल रहे मिथ्या के भरम में । कुल के प्रचार को विचारे सोई जाने धर्म,
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कंदमूल खाये पुण्य पाप के करम में ॥ मूड़ के मुड़ाये गति देह के दाये गति,
शतन के खाये गतिमानत धरम में । शस्त्र के धरैया देव शास्त्र को न जाने भेत्र, ऐसे हैं अवेव अरु मानत परम में ॥
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