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प्राचीन हिन्दी जैन कवि
AANAM
बिना तत्व ज्ञान के किसी प्रकार भी मुक्ति प्राप्त नहीं हो सकती इसका सरस वर्णन सुनिए।
शुद्धि तें मीन पियें पय चालक,
__ रासभ अंग विभूति लगाये । राम कहे शुक, ध्यान गहे बक,
__ भेड़ तिरै पुनि मून्ड मुड़ाये ॥ वस्त्र विना पशु व्योम चलै खग,
व्याल तिरै नित पौन के खाये । येतो सबै जड़ रीति विचक्षन,
मोक्ष नहीं विन तत्व के पाये ॥ यदि जल शुद्धि से ही मुक्ति प्राप्त हो जाती तव तो मछलिएँ कव की मुक्त प्राप्त कर लेती इसी तहर दूध पीकर बालक भी मुक्त हो जाते।
यदि भस्म लगाने से ही ईश्वर मिल जाता तव गधा तो सदा ही भस्म में लोटता रहता है। यदि खाली राम २ रटने से ही पार हो जाते तव तो तोता पहले ही पार पहुंच जाता और यदि ध्यान से ही सिद्ध हो जाती तव बगुला तो सिद्ध कवका वन जाता।
यदि सिर घुटाने से शिव मिलती तब भेड़ तो प्रतिवर्ष ही अपना सारा शरीर घुटाती हैं और यदि वस्त्र रहित दिगंवर रहने से ही कोई ईश्वर बन जाता होता तव पशु तो हमेशा ही नग्न रहते हैं।
यदि आकाश में चलने से निर्वाण होता तब तो सभी पक्षी निर्वाण प्राप्त कर चुके होते। . इसी तरह यदि हवा पीने से ईश्वरत्व मिल जाता तव सर्प तो ईश्वर ही बन गया होता।