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________________ १३८ प्राचीन हिन्दी जैन कवि कोई २ रचनाएं इतनी बड़ी हैं कि वे एक एक स्वतंत्र ग्रंथ के समान हो गई हैं। सभी कविताएँ काव्य की तमाम रीतियों और शब्दालंकार तथा अर्थालंकार से पूर्ण हैं। अनुप्रास और यमक की झन्कार भी आपकी कविताओं में यथेट है। आपने अन्तलापिका, वहिापिका और चित्र वद्ध काव्य की भी रचना की है। आपकी परमात्म शतक नामक कविता चमत्कृत भावों और अलंकारों से पूर्ण है अन्तापिकाएं और वहिापिकाएं भी अत्यंत मनोरंजक है। यहाँ ब्रह्म विलास को कुछ रचनाओं का थोड़ा सा परिचय कराया जाता है पाठक देखेंगे उनमें कितनी सरसता, कवित्व और उपदेश है। हमारी भावना है कि आप जैसे अध्यात्मिक कवियों का भारत में पुनः मान हो और आत्म ज्ञान की मनोहर तान से भारत फिर एक बार गूंज उठे। ब्रह्म विलास पुण्य पच्चीसिका इसमें पच्चीस सुन्दर कवित्त हैं जिसमें पुगय का फल और उसके करने का आदेश दिया गया है। मंगला चरण इस पद्य द्वारा कविवर अपने इष्ट की शक्ति का परिचय कराते हैं इसमें बड़ा सुन्दर शब्दानुप्राप्त है।
SR No.010269
Book TitleJain Kaviyo ka Itihas ya Prachin Hindi Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherJain Sahitya Sammelan Damoha
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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