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कविवर बनारसीदास
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. . .सत्य के नाम... " सम्यक् सत्य अमोघ सत निःसंदेह विनधार । ठीक यथा तथ उचित तथ, मिथ्या प्रादिप्रकार ॥
अर्द्ध कथानक इसमें कविवर ने अपने ५५ वर्ष की छोटी सुख दुख की बातों का बड़े अच्छे ढंग से वर्णन किया है। यह ग्रंथ उन्हें जैन साहित्य के ही नहीं हिन्दी साहित्य के बहुत ही ऊँचे स्थान पर
आरूढ़ करा देता है। इसके द्वारा वे हिन्दी साहित्य में एक अपूर्व कार्य करके बलला गए हैं कि भारतवासी आज से तीन सौ वर्ष पहले भी इतिहास और जीवन चरित का महत्व समझते थे और उनका लिखना भी जानतेथे हिन्दी में ही क्यों सारे भारतीय साहित्य में यही एक आत्म चरित है जो आधुनिक समय के आत्म चरितों की पद्धति पर लिखा गया है हिन्दी भाषा भापियों को इस ग्रंथ का अभिमान होना चाहिए। यह ग्रंथ बड़ी शीघ्रता से लिखा गया है इसी से अन्य कविताओं की तरह इसमें यमक अनुप्रास आदि पर ध्यान नहीं दिया गया है केवल बीती हुई बातों का ही वर्णन करना इसका मुख्य उद्देश्य रहा है फिर भी इसमें कहीं २ बड़े ही मनोहर तथा स्वाभाविक पद्य है।।
इसमें सब मिलाकर ६७३ चौपाई तथा दोहे हैं। कविवर के जीवन चरित्र में इसके अनेक पद्य यत्र तत्र उद्धृत किए गए हैं इसलिए इसका परिचय अलग से नहीं दिया गया है।
के जीवन चरित्र में इसका कि पापा दमा कानुन किए गए हैं