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जैन कथाओ का सास्कृतिक अध्ययन
(१४) ऐसी अनेक जैन कथाएँ हैं जिनमे बताया गया है कि अनेक विद्यानो मे निपुण बनकर नारियो ने धर्म प्रचार किया एव सासारिक माया का परित्याग कर मानव सेवा को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया भगवान महावीर की शिष्या चन्दनवाला ऐसी ही एक स्त्री-रत्ल थी। इसी चन्दना (चन्दनवाला) ने महावीर के धर्म मे दीक्षा लेकर और उनकी प्रथम शिष्या बनकर सघ का नेतृत्त्व किया था। दो हजार वर्ष पुरानी कहानियाँ, डॉ० चन्द्र जैन ,पृष्ठ १०१
(१५) मनुष्यो की तुलना मे नारी अधिक दृढ प्रतिज्ञ होती है । एक बार जो वह निर्णय ले लेती है उसके पालनार्थ वह दृढ सकल्पी बन जाती है । राजीमती की दृढता यहां उदाहरण के रूप मे उल्लेख्य है । नेमिकुमार जब (दीक्षा लेकर) साधु बनकर गिरनार पर्वत पर तपस्या करने लगे, तब राजीमती ने भी अविवाहित रहने का दृढ निश्चय किया और श्री नेमिनाथ की अनुगामिनी बन गई । तपस्विनी बनकर जिस साहस का प्रदर्शन राजीमती ने किया वह नारी के स्वाभिमान एव दृढ़ता को प्रमाणित करता है। राजीमती की दृढ़ता, दो हजार वर्ष पुरानी कहानियां, ले० डा० जगदीशचन्द्र जैन, पृष्ठ १८३ ।
यहां यह कहना उचित ही है कि अधिकाश कथाओ की प्रमुख पात्र नारी ही हैं।
___ इन जैन कथाओ मे चित्रित नारियो को देवी, मानवी और राक्षसी इन तीन रूपो मे साधारणत विभाजित किया जा सकता है । समाज की सुदृढ नीव नारी मे धार्मिकता पुरुष की तुलना में अधिक है । वे अपेक्षाकृत अधिक धार्मिक, पवित्र, त्यागशीला और भावुक हैं । राष्ट्रपिता बापू के मतानुसार जीवन मे जो कुछ पवित्र तथा धार्मिक है, स्त्रियां उसकी विशेष सरक्षिकाएँ हैं । स्त्री जाति मे छिपी हुई अपार शक्ति उसकी विद्वत्ता अथवा शरीर बल की बदौलत नही है, इसके कारण उसके भीतर भरी हुई उत्कट श्रद्धा, भावुकता और त्यागशक्ति है । हमे यह स्वीकारना होगा कि जगत मे धर्म की रक्षा मुख्यत स्त्री जाति के बदौलत हुई है।
सक्षेप मे हम कह सकते हैं कि जैन धर्म की सबसे बडी उदारता यह है कि पुरुषो की भांति स्त्रियो को भी तमाम धार्मिक अधिकार दिये गये हैं । जिस प्रकार पुरुष पूजा-प्रक्षाल कर सकता है उसी प्रकार स्त्रियां भी कर सकती हैं। यदि पुरुष श्रावक के उच्च व्रतो का पालन कर सकता है तो स्त्रियाँ भी उच्च श्राविका बन सकती हैं। यदि पुरुष ऊँचे से ऊँचे धर्म ग्रन्थो