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________________ लौकिक जीवन में धर्म की प्रतिक्रिया लेखक-प्रकाश हितैपी शास्त्री दिल्ली यदि प्राणी धर्म पथ पर चलने लग जाय तो उसका जीवन अपूर्व सुख शांति मय बन जायगा। क्योकि धर्म के सिद्धान्त लौकिक और पारलौकिक जीवन को सुखी बनाने के लिये है किन्तु अज्ञानी मानवो ने यह मान रहा है कि यदि धर्म सिद्धान्त पर जीव चलने लगे तो भूखो मर जायगा। बल्कि देखा यह जाता है जो अधर्म का मार्ग अपनाते हैं वे निरन्तर चिन्तातुर रहकर दुखी बने रहते है। जैनधर्म में अध्यात्म की प्रधानता है। यदि इस अध्यात्मवाद को प्राणी समझ ले तो कभी भी किसी से वर भाव नही कर सकता है। क्योकि अध्यात्मवाद बतलाता है कि सभी द्रव्य स्वतन्त्र है कोई भी द्रव्य किसी अन्य . द्रव्य का साधक बाधक नही है । सभी प्राणी अपनी करनी का फल भोगते है। कोई भी किसी को सुखी-दुखी नही कर सकता है। यदि इस सिद्धान्त को स्वीकार कर ले तो जीव किसी दूसरे से राग द्वेष क्यो करेगा? क्योकि जो भी अनुकूल के प्रतिकूल संयोग हो रहे है वे सब अपनी ही करनी का फल है, उसमें जो सामने वाला निमित्त दिख रहा है वह तो मात्र वाह्य निमित्त है । जब हमारे पुण्य पाप का उदय आता है, तब वह निमित्त बन जाता है। यदि कोई भी पदार्थ प्रतिकूल हो गया है तो वह पाप के निमित्त से हुआ है और अनुकूल हुआ है तो पुण्य फल के निमित्त से हुआ इसलिये आचार्य कहते है कि यदि अपकार करने वाले पर यदि क्रोध करते हो तो सबसे बड़ा अपराध करने वाला तुम्हारा विकारी भाव है । उस पर क्रोध करो, मारते हो तो उस विकारी भाव को मारो। धर्म का दूसरा सिद्धान्त अहिसा है-उसमे निश्चय अहिसा का सम्बन्ध अध्यात्म से है | अर्थात् राग देष का न होना अहिसा है । और राग द्वेष का होना हिंसा है। जब जीव अपने शुद्ध स्वभाव की पहचान कर उस ओर झुकता है, उसमें रुकता है तव राग द्वष अपने आप नष्ट होने लगते है। इसी को राग द्वष का अभाव कहा जाता है। एक संस्कृत कवि ने कहा है जो आत्मा में परमात्मा को देखता है तथा परमात्मा मे आत्मा को देखता है, वही सच्चा अहिसक है। क्योकि जो प्रत्येक आत्मा मे कारण परमात्मा के दर्शन करेगा वह किसी जीव को कैसे सता सकता है ? धर्म सिद्धान्त के अनुसार एक छोटे-सा छोटा जीव भी परमात्मा होने की शक्ति रखता है । इसलिये एक परमात्मा को पूज्य मानकर उसकी पूजा करे और दूसरे भावी परमात्मा का तिरस्कार करे तो यह परमात्मा की पूजा कहाँ हुई यह तो परमात्मा का मखौल हुआ। ____ इसीलिये आचार्यश्री समन्त भद्र ने जीवो को सर्वोदय का उपदेश दिया है। उन्होने कहा है आपका धर्म सर्वोदय है, जिसमे सबको समान विकास का अवसर प्राप्त है। सभी प्राणी अपना-अपना . आत्मा से परमात्मा वन सकते है । सर्वोदयवादी मे स्वभावतः सर्व धर्म सम-भाव, सर्व .. भाव भाव होता है। वह कभी किसी का विरोध नहीं करता है। वह सोचता है जग की तन्त्री वजने दे तु कभी न उसको . तुझे पराई क्या पडी -
SR No.010268
Book TitleJain Kathao ka Sanskrutik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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