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हिंसा-रत विश्व के लिये भगवान महावीर का अमर सन्देश
राजवैद्य जसवन्त राय जैन, कलकत्ता
समयं गोमय ! मा पमायए
-हे गौतम ! तू क्षण मात्र भी प्रमाद न कर ।
भगवान महावीर की यह अमर वाणी समस्त मानव-जाति के लिये है। आज जब कि हम प्रमत्त है, उन्मत । है, युद्ध-रत है हिसा व घृणा से भरे है-उस समय भगवान वर्धमान प्रभू सम्पूर्ण मानव जाति के मानो जागरण का
अमर स्वर प्रदान करते हुये कह रहे है
जागो, उठो, क्षण मात्र भी प्रमाद न करो।
भगवान् महावीर तप, संयम, त्याग व वैराग्य के मूर्तिमान अवतार थे। उन्होने विपुल वैभव, ऐश्वर्य एवं भोग को ठुकराकर संयम का मार्ग लिया था।
भगवान महावीर का अवतरन २५७१ वर्ष पहले वर्तमान बिहार प्रांत के क्षत्रिय कुण्ड ग्राम महाराज सिद्धार्थ की महरानी त्रिशला की पवित्र कुक्ष से चैत्र शुक्ला त्रियोदशी को हुआ था । तीस वर्ष की अवस्था में आपने साधु धर्म ग्रहण किया और कठोर तपश्चर्या के परिणाम स्वरूप आपने कैवल्य ज्ञान प्राप्त किया। भव बन्धन के खुल जाने से महावीर निगण्ठ या निग्रन्थ की उपाधि से विभूषित हुये। राग द्वष रुपी शत्रुओ पर विजय पाने के कारण आप ही जिन (जैना) है आप ही तीर्थकर अर्हत् एवं महावीर हैं।
भगवान महावीर ने मनुष्य जाति को आशा, उत्साह व पौरूष से उद्दीप्त किया। आपने सन्देश दिया कि सभी को मुक्त होने का अधिकार है और सभी अपने पुरुषार्थ से कैवल्य प्राप्त कर सकते हैं। भगवान महावीर की सन्देश किसी एक देश के लिये नही, एक जाति के लिये नही, एक वर्ग के लिये नही. एक काल विशेष के लिये नहीं-यह सन्देश सनातन है, सार्वभौम है, सार्वकालिक है।
“अहिसा" का महान सन्देश ही आज मनुष्य जाति को महाविनाश, महाध्वंस एवं सर्वनाश से बचा सकता है। महावीर का जीवन अडिसा की विराट प्रयोगशाला थी-आपने अहिसा का परम साक्षात्कार कर अपने को अभय बनाया था। अहिसा का आमोघ अस्त्र ही मानव जाति को पाशविक प्रवृतियों से बचा सकता है। संयमहीन जीवन की ओर बढ़ते हुये दुनियाँ के लिये सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान एवं सम्यक् चरित्र ही एक ऐसा मार्ग हैजहाँ उसकी रक्षा, प्रगति एवं विकास सम्भव है।
उनका भौतिक उपदेश यही था कि स्वयं सत्य रूप बनो और सत्य का माक्षात्कार करो। असत्य से घिरे रहकर सत्य की प्राप्ति असंभव है। दुःख का मूल कामना है-दुःख के महासागर से सन्तरण करने का एक मात्र गय है-कामना पर अंकुश लगाना परिग्रह घटाने मे ही सच्चा सुख व सन्तोप है।