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________________ साम्यवाद, समाजवाद एवं अपरिग्रहवाद डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल (जयपुर) - विश्व के सभी राष्ट्र आज के युग में किसी-न-किसी वाद के आधार पर अपने-अपने राज्य की नीति निर्धारण करते है । अमेरिका, ब्रिटेन एवं फ्रांस जेसे राष्ट्र अपने को पूँजीवाद राष्ट्र कहते है । रूस और चीन ने अपने को साम्यवादी राष्ट्रों की पंक्ति मे खडा किया है तथा भारत जैसे देश ने अपने को समाजवादी राष्ट्र घोषित किया है। इन तीनो ही प्रणालियो में जनता की भलाई एवं लोककल्याणकारी राज्य की परिकल्पना की जाती है। लेकिन पूँजीवाद में जहाँ पूंजी की अनियन्त्रित संचय, उपभोग एव वितरण है वहाँ साम्यवाद एवं समाजवादी व्यवस्था में पूंजी पर एकाधिकार की समाप्ति तथा उसके उपभोग एवं वितरण पर अंकुश है । पूँजीवाद मे सम्पत्ति का खुला प्रदर्शन है । धनी, निर्धन एवं वर्गभेद की खुली छुट है वहाँ साम्यवाद एवं समाजवाद मे एक वर्ग रचना की परिकल्पना है। लेकिन इन सबसे भिन्न एक और वाद है जो अपरिग्रहवाद के नाम से जाना जाता है जिसमें नैतिकता के आधार पर परिग्रह की सीमा का निर्धारण होता है जिससे दूसरो को भी अवशिष्ट संपत्ति का लाभ मिल सके। पूँजीवाद राष्ट्र भी अपने आपको समाजवादी राष्ट्र घोषित करते है क्योकि पूँजीवाद का उद्देश्य भी समाज के सभी वर्गों को विकास के उचित अवसर प्रदान करना है। समाजवाद एक आधुनिक विचारधारा है जिसका उद्देश्य आर्थिक जीवन को नियमन द्वारा समाज में फैली हुई व्यक्तिगत असमानताओ को दूर करना है। समाजवाद उन प्रवृत्तियो का समर्थक है जो सार्वजनिक कल्याण पर जोर देती है तथा उसकी मान्यता है कि राष्ट्र को पुलिस राज्य न होकर लोककल्याणकारी वनाने का सकल्प होना चाहिए किन्तु साम्यवाद वर्गहीन समाज का निर्माण करने का उद्देश्य प्रस्तुत करता है जिसमे ऊँच नीच, धनी निर्धन का कोई भेद नही तथा जाति धर्म, रंग एवं रष्ट्रीयता को कोई स्थान नही । अपरिग्रहवाद की परिकल्पना में ऐसे समाज का निर्माण करना है जिसमें राष्ट्र का प्रत्येक व्यक्ति अपनी आवश्यकताओ पर नियन्त्रण करे तथा आवश्यकता से अधिक संग्रह को लोक कल्याण के लिये स्वमेव वितरण कर दे । अपरिग्रहवाद मे दूसरो के प्रति सहानुभूति होती है जिससे प्रेरित होकर वह अपने राष्ट्र एवं समाज के व्यक्यिो के स्तर को उन्नत करने का प्रयास करता है। साम्यवाद बनाम अपरिग्रहवाद अपरिग्रहवाद के सिद्धान्त को पार्श्वनाथ एवं महावीर ने देश को उस समय दिया था जब यहाँ धनी निर्धन, ऊंच नीच, शिक्षित अशिक्षित, ब्राह्मण अब्राह्मण का वर्ग का भेद अपनी चरम सीमा पर पहुंच चुका था। जब उन्होने देखा कि एक व्यक्ति के पास तो इतना अधिक संग्रह है कि वह उसके कारण अपने आपको संत्रस्त मानता है किन्तु एक ऐसा वर्ग भी है जिसको दो जून पेट भर खाने को भी नहीं मिलता। एक व्यक्ति के पास अशर्फियो का भण्डार है, हाथी घोडो की पंक्ति खडी है तथा नौकर चाकर की कोई सीमा नही है तो दूसरी ओर कुछ ऐसे भी व्यक्ति है जिनके पास ये सभी कल्पनामात्र है । महावीर से यह सव नही देखा गया और उन्होने अपनी दशना में अणुव्रत एवं महाव्रतो के माध्यम से समस्त राष्ट्र में व्यक्ति के वर्ग भेद मिटाने के लि परिमाणवत अथवा अपरिग्रह को जीवन मे उतारने की व्यवस्था की। साम्यवाद को राष्ट मे व्यवहत करने के लिये क्रान्तिकारी एवं हिसात्मक पद्धति की व्यवस्था औ र गोली, रक्तपात, एवं मारकाट सभी क्षम्य है। शासन एवं समाज सचालन सगीनो की नोक पर होता है। समाजवाद में अधिनियमो के आधार पर समाज में परिवर्तन किया जाता है । वैको का, वीमा व्यवसाय का.
SR No.010268
Book TitleJain Kathao ka Sanskrutik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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