________________
जैन कथानो का साहित्यिक सौन्दर्य
सौन्दर्य को भी तिरस्कृत करके अपने साधना-मार्ग पर अटल रहने वाले मुनि के प्रति पाठक अपनी पूरी श्रद्धा दे पाता है । जैन शृगार-वर्णन के इस विवरण से इतना रपष्ट हो जाता है कि धार्मिक काव्यो मे जिनका मुख्य उद्देश्य भक्ति का प्रचार था, शृगार कभी उपेक्षित नही रहा, बल्कि इन वर्णनो से तो इसकी अतिशयता का भी पता चलता है।"
इस उद्धरण से जो तथ्य जैन कवि के सम्बन्ध मे कहे गये है, वे जैन कथाकार के विषय मे भी पूर्ण रूप से लागू होते है । । ।
जैन कथाकारो ने मानव की सहज प्रवृत्तियो का भी वडी सहृदयता से चित्रण किया है। दीन हीन की व्यथा क्या होती है पाराध्य के प्रति आराधक की भक्ति मे कितनी प्रगाढता रहती है ? सघर्षों से जूझने की दृढता जैन तपस्वियो मे अगाध है । काम-क्रोध, मान, माया, लोभ के वशीभूत होकर प्राणी कितना अधम बन जाता है आदि की अभिव्यजना जैन कहानियो मे स्वाभाविक रूप से हुई है । विविध रसो का परिपाक इन कहानियो मे इस रूप मे हुआ है कि पाठक, एव श्रोता प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता । पलायनवादी प्रवृत्ति का विरोध करते हुए कथाकारो ने यथार्थवाद के धरातल पर आदर्शवाद की सुदृढ स्थापना की है। उदात्त चरित्रो की सृष्टि ने मानव की हीन भावनायो की रेखायो को अस्तित्वहीन बना दिया है । स्वस्थ सामाजिक, धामिक एव राजनैतिक वातावरण ने युग की मान्यताप्रो को पर्याप्त परिपुष्टि प्रदान की है। इन कयायो मे अभिव्यजित भावनासो की गहनता, मार्मिक सवेदना तथा विश्व-वन्धुत्व की कामना इतनी गहरी रेखाप्रो मे उभरी हैं कि युग-युगो तक इन कहानियो की लोकप्रियता जीवित रहेगी ।
___ भाव पक्ष की भाँति इस कयां साहित्य का कला पक्ष भी वडा सुन्दर एव भव्य है । साहित्य की एक प्रमुख विधा कहानी है, जिसके द्वारा साहित्य का सतुलित तथा मनोरम रूप निखरता है । सस्कृत, प्राकृत, अपभ्रशादि भाषामो से अनूदित इन जैन कहानियो मे बडी सरल भाषा अपनाई गई है । प्रान्तो एव नगरो आदि के विवरण इतने सुन्दर प्रस्तुत किये गए हैं कि सामान्य पाठक एब श्रोता भी सहज मे ही प्रभावित हो उठना है । इन वर्णनो मे मुहावरेदार पालकारिक एव लोकोक्तियो से सम्पन्न भाषा बडी सुहावनी लगती है । सुबोध और सरस शैली मे लिखित ये कथाएँ जन-जीवन की विशि
1. विद्यापति-ले० श्री शिवप्रसाद सिह, पृष्ठ ११० तथा ११३-११४