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जैन कथानो मे नामा की सयोजना
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(४) जिनकी समूह शक्ति निरपेक्ष हो वे यौगिक रूढ नाम कहलाते है। जैसे-अश्वगन्धा (एक जडी का नाम) । यदि यहाँ हम इस नाम की अवयव शक्ति द्वारा व्युत्पत्ति करें तो अश्वस्य गन्ध इव गन्धो यस्या-घोडे की गन्ध के समान है गन्ध जिसकी । लेकिन यह व्युत्पत्ति यहाँ निरपेक्ष है क्योकि असगन्ध नामक जडी घोडे की गन्ध के समान गन्ध की अपेक्षा नहीं रखती। इसी प्रकार समूह-शक्ति से भी यहाँ निरपेक्षता है । यदि इन चार प्रकार के नामो के भेद-प्रभेदों पर विचार किया जाय तो अनेक भेद हो सकते है। दृष्टव्य-जयदेव विरचित, चन्द्रालोक का प्रथम मयूख ।
जैन कथानो मे नामों की सार्थकता उल्लेख्य है । प्राय गुणो के अनुरूप ही नाम रखे गये है । जैसे-धनदत्त (दान मे धन देने वाला), जयकुमार (विजय प्राप्त कर्ता), सुलोचना (सुन्दर नेत्र वाली), दुर्गन्धा (जिसके शरीर से दुर्गन्ध आती हो) इत्यादि । पुरातत्व की दृष्टि से भी इन जैन नामो का विशेष महत्व है। इनके माध्यम से हमे प्राचीन जैन-सस्कृति की एक प्रशस्त झलक दिखाई देती है । इन नामो के विशद अनुशीलन से हमे यह ज्ञात होता है कि जातिगत नाम गर्ने शनै व्यक्ति वाचक बन गये एव स्थानो के नामो ने व्यक्तिवाचक नामो को भी प्रभावित किया। इस प्रकार व्यवसाय, जाति, देश आदि के अनुरूप भी हजारो नाम-इन जैन कथानो मे अनायास ही उपलब्ध हो जाते है।
इन जैन नामो ने अपनी रमणीयता, कोमलता, गुणानुरूपता एव लालित्य से लोक-प्रियता तो प्राप्त की ही है, साथ ही पूर्ववर्ती तथा परवर्ती नाम परम्परा को विविध रूपो मे प्रभावित भी किना है । उदाहरणार्थ यहाँ कुछ जैन नामो का उल्लेख किया जाता है। ये पात्रो की चारित्रिक विशेषतायो के परिचायक है एव सार्थक कहे जा सकते है । रूढ नाम तो कम है, लेकिन यौगिक, योगरूह तथा यौगिकरूढ नामो की पर्याप्त संख्या मिलती है।
जैन आचार्यों के नाम १ गौत्तम गणवर २ भद्रबाहु ३ धरसेन ४ कुन्दकुन्द ५. उमास्वाति ६. समन्तभद्र ७ सिद्धपेन ८ देवनन्दि ६ अकलक १०. विद्यानन्दि ११. जिनसेन १२ प्रभाचन्द्र १३ वादिराज १४. जिनभद्रगणि १५. हरिभद्र १६. हेमचन्द्र १७ यशोविजय ।
मषि, मुनियो एवं साध्वियो की नामावली ऋपि-मुनियो के नाम
साध्वियो के नाम १. गुणसागर
१ पृथिवीमती २. सुगुप्ति
२. जिनमती