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________________ १०२ जैन कथानो का सास्कृतिक अध्ययन साहित्य में आदर्श शब्द का प्रयोग दर्शन अथवा राजनीति की भांति किसी रूढिगत अर्थ मे नही किया जाता। साहित्य का आदर्शवाद मानवजीवन के आन्तरिक पक्ष पर जोर देता है। जीवन के दो पक्ष है अान्तरिक और बाह्य । आन्तरिक पक्ष मे मानसिक सुख, प्रसन्नता, परितोष, आनन्द प्राजाते है। वाह्य पक्ष मे ऐश्वर्य, वैभव तथा भौतिक उन्नति का स्थान है। आदर्शवादी साहित्यकार का विश्वास है कि मनुष्य जब तक आन्तरिक सुख प्राप्त नहीं करता, उसे वास्तविक अानन्द की उपलब्धि नहीं हो सकती। मानव की चेतना तब तक भटकती रहेगी, जब तक वह शाश्वत, चिरतन सत्य अथवा अानन्द नही प्राप्त कर लेता। इस प्रकार आदर्शवाद मानवजीवन की आन्तरिक व्याख्या करता है। उसकी उच्च सभावनायो के प्रकाशन मे तत्पर होता है। वह उन मानव-मूल्यो को ग्रहण करता है, जो कल्याणकारी है, शुभ है, सर्जनात्मक है । आदर्शवादी साहित्यकार भाव और कला की महत्तर ऊँचाइयो पर जाने का प्रयास करता है। अन्तर्मुखी होने के कारण कभी-कभी उसकी चेतना आध्यात्मिक, यहाँ तक कि रहस्यवादी हो जाती है ।' 1 __ जैन कथानो मे यथार्थवाद का चित्रण विषाक्त वातावरण की सृष्टि के लिए नही किया गया है और न मानवीय विकृतियो की कुत्सित अनुभूतियो की रोचकता के हेतु उभारा गया है। मानव को प्रबुद्ध करने के लिए ही यथार्थवाद का सहारा लेकर कथाकारो ने उसे एक 'सभाव्य आदर्शवाद की ओर बढने के लिए सदैव प्रोत्साहित किया है। आदर्शोन्मुख यथार्थवादी परम्परा का पूर्ण विकास हमे जैन-कथाओ मे प्राप्त होता है। नारकीय जीवन कितना वेदना-पूर्ण है, पशु-गति की कितनी भयावह विभीषिकाएँ है, धनिक वर्ग कितना निर्मम होकर निर्घनो को सताता है, कामी पुरुप किस प्रकार उचितानुचित के भेद को भूल जाता है, लोभी कितनी निर्ममता से दूसरो के धन का अपहरण करता है, नारी की काम-वासना जब उद्दीप्त होती है, तब वह सदाचार की सीमा का किस प्रकार उल्लधन करती है, कामिनी व्यभिचारिणी बनकर किस रूप से वह पर पुरुष को आकर्षित करती है, आदि का चित्रण कथाकारो ने बडी सजगता से किया है, लेकिन साथ ही साथ इस चित्रण को आदर्शवाद की तूलिका से ऐसा मनोरम बना दिया है कि पाठक अथवा श्रोता कहानी को पढकर या सुनकर एक विशिष्ट प्रबोधन से स्वय को जागरुक 1 हिन्दी साहित्य कोष प्रथम भाग पृष्ठ १०३
SR No.010268
Book TitleJain Kathao ka Sanskrutik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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