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________________ जैन कथानो मे अलौकिक तत्व (२) नगर देवता के आसन का कपित होना, नगर के बाहरी दरवाजो को कीलित करना एव महासती के वाम चरण-स्पर्श से ही उनका वुलना । नोली बाई की कथा-पुण्यास्रव कशाकोप पृष्ठ १६५ (३) विद्या के प्रभाव से सुन्दर विमान का निर्माण और उसके माध्यम से आकाश-यात्रा करना। नागकुमार कामदेव की कथा-पुण्यातव कथाकोष पृष्ठ २२८ (४) चार घातिया कर्मो के नष्ट होने से भगवान के दण अतिशयो का समुत्पन्न होना । यथा चारसी कोस पर्यन्त कही भी दुर्भिक्ष का न पडना, आकाश मे निराधार गमन करना, भगवान के समवसरण मे किसी भी जीव के द्वारा अन्य किमी जीव का घात न होना, भगवान का सदा निराहार रहना, चारो दिशामो मे भगवान के चार मुखो का दिखाई पडना, सर्व विद्ये रखरता भगवान के परम औदारिक शरीर की छाया का न पडना आदि । पुण्यालय कथाकोश पृष्ठ ३४८ (५) चक्रवर्तित्व की विभूति का वर्णन अठारह करोड घोडे, चौरासी लाख हाथी, चौरासी लाख रथ, चौरासी करोड प्यादे, बत्तीस हजार शरीर की रक्षा करने वाले यक्षाधीश, छयानवे हजार रानियाँ, तीन करोड गाये, नव निधि आदि कम पाश्चर्यजनक नही है। इसी प्रकार काल निधि, महाकला निधि, पाइकनिधि माणवक निधि, नैसर्प निधि, सर्वरत्न निधि ग्रादि के द्वारा क्रमश इच्छित वस्तुप्रो की प्राप्ति होना, सोना, चाँदी, लोहा आदि खनिज पदार्थों की इच्छानुसार उपलब्धि होना, सुगधित चावल, गेहू आदि धान्यो का इच्छानुसार प्राप्त होना । कवच तलवार गदा यादि अनेक प्रकार के शस्त्रो की अावश्यकतानुसार प्राप्ति होना आदि । (६) दिगम्बर मुनि को अन्तराय रहित एव विधिवत पाहार देने से पचाश्चर्यो का होना । एव पुण्य-प्रभाव से करोडो रत्नो की सहसा वर्षा होना । सुफेत नामक सेठ की कथा-पुण्यालय कथा कोष-पृष्ठ २५७ (७) किजल्क जाति के पक्षियो के निवास से महामारी, दुभिक्ष, रोग, अपमृत्यु आदि का न होना । आराधना कथा कोष दूरारा भाग पृष्ठ ५५ (८) विद्यावत से दुर्गन्ध से दूपित शरीर का सुगध मय हो जाना । पाराधना कथा कोष भाग २ पृष्ठ ६५ (6) मत्रसिद्धि से आकाश गामिनी विद्या की उपलब्धि । आराधना कथा कोष प्रथम भाग पृष्ठ ६५
SR No.010268
Book TitleJain Kathao ka Sanskrutik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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