________________
विद्या-सिद्धि | ३६ तव तक रक्षक राजपुरुपों ने उन कन्याओं के पिताओं को जाकर बता दिया कि कोई पुरुष तुम्हारी कन्याओं को लिए जा रहा है।
यह सुनकर विद्याधरों में इन्द्र के समान तेजस्वी अमरसुन्दर अन्य सभी विद्याधरों के साथ रावण को मारने की इच्छा से उसका पीछा करने लगा। उसे देखकर नवोढा कन्याओं ने कहा-स्वामी ! यह अकेला अमरसुन्दर ही अजेय है और इस समय तो इसके साथ अन्य अनेक विद्याधर भी हैं । घोर संकट है, विमान की गति बढ़ाइए।
रावण खिल-खिलाकर हँस पड़ा। वोला-सुन्दरियो ! हजारों हरिणों के लिए सिंह की एक दहाड़ ही काफी होती है । तुम सव धैर्यपूर्वक मेरा वल देखो। और रावण ने विमान धीमा कर दिया।
तव तक विद्याधर राजा समीप आ चुके थे। रावण ने उनसे शस्त्र-युद्ध उचित न समझा और प्रस्वापन अस्त्र द्वारा उन्हें मोहित करके नागपाश में वाँध लिया।
सभी विद्याधर विवश हो गये । उनके मुखों पर खेद और लज्जा - को रेखाएँ स्पष्ट दृष्टिगोचर होने लगीं। पुत्रियों से पिताओं का दुःख न देखा गया और उन्होंने प्रार्थना करके उन्हें वन्धनमुक्तं करवा दिया।
विद्याधर अपने-अपने नगर वापस चले गये और रावण स्वयंप्रभ नगर में आ गया। छह हजार रानियाँ महलों में आनन्द के साथ रहने लगीं।
पटरानी मन्दोदरी से रावण के दो पुत्र हुए-इन्द्रजीत और मेघवाहन।