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________________ विद्या-सिद्धि - -माता, आकाश में बड़ी तेजी से उड़ता हुआ यह विमान । किसका है ? -वैश्रवणं' का। -वैश्रवण कौन है, माँ ? । -मेरी बड़ी वहन कौशिका का पुत्र । -फिर यह हमसे मिलने क्यों नहीं आता ? -हमसे शत्रुता रखता है, इसीलिए । - क्यों ? -यह एक लम्बी कहानी है, सुनकर क्या करोगे, बेटा ! जाने दो, हृदय के पुराने घाव फिर टीसने लगेंगे। -कहते-कहते केकसी की आँखें डवड़वा आईं। माता की दशा देखकर तीनों भाई-दशमुख, कुम्भकर्ण और विभीषण-इस घटना को सुनने के लिए आतुर हो गये। दशमुख (रावण) ने तो जिज्ञासापूर्वक उस नभोगामी विमान के बारे में यों ही पूछ लिया था । उसे क्या मालूम था कि इस विमान और विमान १ केकसी को वैश्रवण विश्रवा ऋषि के आश्रम में ही दिखाई दिया था । [वाल्मीकि रामायण, उत्तरकाण्ड]
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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