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नकली इन्द्र | २३
वहीं स्थायी निवास स्थान बना लिया और एक नगरी की रचना की जो उसी के नाम पर किष्किधिना (किष्क्रिधा) कहलाई।
सुकेश के तीनों बलवान पुत्रों ने निर्घात विद्याधर को लंका से निकाल बाहर कर दिया।
तदनन्दर लंकापुरी का राजा माली बन गया और किष्किधिना (किष्किधा) का आदित्यराजा ।
की रानी वित्तमकुक्षि में अबद्रि के
रथनूपुर के अधिपति सहस्रार की रानी वित्तसुन्दरी ने एक रात को स्वप्न देखा कि कोई उत्तम देव च्यव कर उसकी कुक्षि में अवतरित हुआ है । गर्भावस्था में रानी को विचित्र दोहद' हुआ-'मैं इन्द्र के साथ रमण करूं।'
अपनी इच्छा न तो वह किसी से कह सकती थी और न ही इसके पूर्ण होने की आशा थी। गर्भवती अपने दोहद को हृदय में ही दवाये रही । परिणामस्वरूप उसका शरीर दुर्बल होता चला गया, मुख की कान्ति क्षीण हो गई। __ सहस्रार राजा ने रानी से इस दुर्बलता का कारण पूछा तो पहले तो वह टालमटोल ही करती रही परन्तु विशेष आग्रह पर उसने नीचा मुख करके धीरे से दोहद को वात पति को बता दी। पति ने विद्यावल से इन्द्र का रूप बनाकर पत्नी का दोहद पूर्ण किया।
गर्भकाल व्यतीत हो जाने पर रानी चित्तसुन्दरी ने एक पराक्रमी पुत्र को जन्म दिया। दोहद के अनुसार पुत्र का नाम रखा गया 'इन्द्र' । इन्द्र युवा हो गया तो राजा सहस्रार उसे सिंहासन सौंपकर स्वयं धर्म-पालन में दत्तचित्त हो गया।
१ दोहद-गर्भवती की तीन अभिलापा ।