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चली । भयंकर सम्मान में भूमि पर गिरा
के विद्याधर
२२ | जैन कथामाला (राम-कथा) चलीं । भयंकर संग्राम में किष्किधि के अनुज अन्धक ने विजयसिंह का मस्तक खड्ग प्रहार से भूमि पर गिरा दिया।
विजयसिंह के धराशायी होते ही इसके पक्ष के विद्याधर मैदान छोड़कर भाग गये और श्रीमाला को लेकर किकिधि अपनी नगरी को चला आया। ____पुत्र की मृत्यु ने राजा अशनिवेग के हृदय में क्रोध की अग्नि प्रज्वलित कर दी। कुपित होकर वह सैन्य सहित निकला और किष्किंधा नगर पर महाकाल की भाँति टूट पड़ा। विजयसिंह का कण्ठच्छेद करने वाले अन्धक का सिर उसने धड़ से उड़ा दिया।
शत्रु प्रचण्ड और दुर्दमनीय था, अतः किष्किघापति अपने परिवार को लेकर पाताल लंका भाग गया। भयभीत होकर सुकेश भी लंका छोड़कर पाताल लंका जा पहुंचा।
सिंहासनों को रिक्त देखकर अशनिवेग का क्रोध शान्त हो गया। उसने निर्यात नाम के विद्याधर को लंका के सिंहासन पर विठाया और वापिस रथनूपुर लौट आया।
कुछ समय पश्चात अशनिवेग अपने एक अन्य पुत्र सहस्रार को राज्य सौंप कर प्रवजित हो गया।
उस सिंहासनों कालका जा पहुंचा। भयभीत धापति अपने
पाताल लंका में निवास करते हुए सुकेश के इन्द्राणी नाम की रानी से माली, सुमाली और माल्यवान तीन पुत्र हुए तथा किकिधि के श्रीमाला से आदित्यराजा और ऋक्षराजा दो पुत्र हुए । अनुक्रम
बालक युवा हो गया और ऋक्षराजा पुत्र हुए तथा किाम की
___एक बार किष्क्रिधि अर्हत भगवान की वन्दना करके लौट रहा था कि मार्ग में उसे मधु नाम का पर्वत दिखाई दिया। वहाँ उद्यान में क्रीड़ा करते हुए उसे बहुत शान्ति मिली। उसने परिवार सहित