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नकली इन्द्र
वैताढयगिरि के रथनूपुर नगर में पराक्रमी विद्याधर राजा अशनिवेग अपने दोनों अंति बलिष्ठ पुत्रों-विजयसिंह और विद्युद्वगके साथ शासन करता था। उसी पर्वत पर आदित्यपुर में मन्दरमाली नाम के विद्याधर नरेश का शासन था। उसने अपनी पुत्री श्रीमाला का स्वयंवर किया। _स्वयंवर में अनेक विद्याधर राजा आये । 'किष्किधा का अधिपति किष्किधि, लंकाधिपति सुकेश और रथनूपुर के राजकुमार विजयसिंह आदि भी सम्मिलित हुए। __ वरमाला हाथ में लेकर श्रीमाला ने स्वयंवर मण्डप में पदार्पण किया। एक-एक विद्याधर पर दृष्टि निक्षेप करती हुई वह आगे वढ़ती जा रही थी। जिसके सामने से वह आगे बढ़ जाती उसी का चित्त खेद-खिन्न हो जाता। ___ श्रीमाला किष्किधि कुमार के सम्मुख पहुँची तो खड़ी रह गई। उसने वरमाला डाल दी-किष्किधि के कण्ठ में ।
किष्किधि के कण्ठ में वरमाला देखकर रथनूपुर का राजकुमार विजयसिंह गर्वपूर्वक गरजा
-इसके पूर्वजों ने तो चिरकाल से वैताढयगिरि छोड़ दिया है। इसे यहाँ किसने बुलाया ?