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- राम का मोक्ष गमन | ४६३ - एक वार रामः मुनि विचरण करते-करते कोटिशिला' पर आ पहुंचे। इस शिला पर रात्रि में प्रतिमा योग लगाकर उन्होंने क्षपक श्रेणी का आश्रय करके शुक्ल ध्यानांतरदशा प्राप्त की। उसी समय सीता के जीव अच्युतेन्द्र ने अवधिज्ञान से अपने पूर्वभव को जानने का प्रयास किया। उपयोग से राम की यह स्थिति जानकर उसने विचार किया-'यदि श्रीराम पुनः संसार दशा को प्राप्त हो जायँ तो
मेरा उनसे अगले जन्म में सम्बन्ध हो सकता है। ..... सीता का जीव मोहासक्त हो गया। अपने इस अकृत्य को सफल .. करने हेतु अन्य देवियों तथा विद्याधर कुमारियों को साथ लेकर वह
राम के पास आया । अनुकूल उपद्रव करने के विचार से उसने सीता ' का रूप बनाया । कामदेव के सहकारी के रूप में वसन्त का आगमन कराया । शीतल, सुगन्धित वायु बहने लगी। सभी प्रकार से कामोद्दीपक वातावरण बनाकर सीता रूपधारी अच्युतेन्द्र विविध कामचेष्टाएँ करता हुआ राम से कहने लगा-........... . ... -हे नाथ ! मैं अपनी भूल पर पश्चात्ताप कर रही हूँ। अब मैं
सब कुछ छोड़कर आपके पास आ गई हूँ। जव आपने मुझे रोकने का · आग्रह किया था तो मैंने मानपूर्वक ठुकरा दिया था ! अब मैं आपके पास ही रहूँगी। आप एक वार तो मेरी ओर देखिए । । इस प्रकार सीता राम को लुभाकर उन्हें अपने ध्यान से विचलित
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१. कोटिशिला-यह वही शिला थी जिसे वासुदेव लक्ष्मण ने वानरों और .. विद्याधरों के समक्ष उठाया था।
२ शुक्लध्यानान्तर दशा-शुक्लध्यान के प्रथम दो पायों के बाद की दशा। ..... प्रथम दो पायों के नाम हैं (१) पृथक्त्ववितर्क विचार (२) एकत्व
वितर्क विचार। -त्रिषष्टि शलाका ७.१० गुजराती अनुवाद पृष्ठ १७६ का पाद-टिप्पण :