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________________ ४८४ | जैन कथामाला (राम-कथा) --चलती-फिरती है ? -नहीं। - खाती-पीती है ? -नहीं। -जैसे तुम इसको लिटा देते हो वैसे ही पड़ी रहती है ? -हाँ। -अरे मूर्ख ! यही तो लक्षण होते हैं, शव के ! तुम्हारी स्त्री अवश्य ही मर गई है। -राम ने निर्णयात्मक स्वर में कहा । कुछ समय तक तो देव ने हतप्रभ होने का अभिनय किया और फिर वोला -भद्र ! आपने मुझ पर बहुत उपकार किया। मेरे विवेकचक्षु खुल गये । सचमुच ही मेरी प्रिया मर गई है । अब मुझे इसका दाह संस्कार कर ही देना चाहिए। - -हाँ यही विवेकपूर्ण कार्य होगा। राम ने उसके स्वर में स्वर मिलाया। अब प्रश्न करने की बारी आई देव की और उत्तर देने की श्रीराम की । देव ने भोलेपन से पूछा-- -~भद्र ! आपके कन्धे पर यह कौन है ? '. .-मेरा छोटा भाई लक्ष्मण है । मुझसे रुठ गया है। देव ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी... क्या यह साँस लेता है ? -नहीं!-राम का उत्तर था। -~-क्या यह खाता-पीता, चलता-फिरता है ? . -नहीं। --तो क्या, जैसे आप लिटा देते हैं वैसे ही पड़ा रहता है ?
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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