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. . वासुदेव को मृत्यु | ४८३ -यदि मुर्दे जिन्दा हो सकते हैं तो मेरे प्रयास सफल क्यों नहीं हो सकते ?
-कौन मुर्दा, कंसा मुर्दा, कहाँ है मुर्दा ?
-लक्ष्मण हैं मुर्दा और आपके कन्धे पर पड़ा हुआ है उनका शव ?
श्रीराम एकदम कुपित होकर वोले
-दृष्ट ! दूर हा जा मेरी नजरों से । मेरे जीवित भाई को मुर्दा वताता है । जान से मार डालूंगा।
जटार्यदेव से राम ऐसे कठोर वचन कह ही रहे थे कि उसी समय कृतान्तवदन सारथि का जीव भी उन्हें वोध देने के लिए स्वर्ग से आया।
उसने एक पुरुप का रूप बनाया और एक स्त्री का शव अपने कन्धे पर रखकर राम के सामने होकर निकला। उसे देखकर राम - बोले
-अरे मुग्ध ! तुम तो बावले हो गये हो ।
क्यों ? -पुरुप वेशधारी देव (कृतान्तवदन के जीव) ने पूछा।
-इस, स्त्री का शव लिए-लिए घूम रहे हो, यह तुम्हारी उन्मत्तता नहीं तो और क्या है ? -राम ने व्यंग्य किया।
-ऐसा अशुभ क्यों बोलते हो? मेरी पत्नी जीवित है। बस मुझसे रूठ गई है। 'रूठ गई हैं' कहकर हँस पड़े श्रीराम; बोले
-अच्छा यह वताओ कि यह साँस लेती है ? . ' नहीं। . ,