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वासुदेव की मृत्यु ! ४७७ किया। यह तो घोर निंद्य कर्म है । हम किसी को क्या मुख दिखायेंगे। लोग हमें भातृद्रोही कहकर अपमानित करेगे। ऐसे तिरस्कृत जीवन से क्या लाभ ?'
यह सोचकर उन्होंने माता-पिता से आज्ञा ली और महावल मुनि के चरणों में जाकर प्रवजित हो गये ।
लवण और अंकुश के साथ राम-लक्ष्मण वापिस अयोध्या लौट
आये।
दोनों पुत्र लवण-अंकुश अपनी-अपनी रानियों के साथ दाम्पत्य सुख में निमग्न हो गये।
राजा भामण्डल अपने महल की छत पर बैठा हुआ प्रकृति के दृश्यों का अवलोकन कर रहा था। उसकी दृष्टि वैताढयगिरि की दोनों श्रेणियों पर दौड़ रही थी। उसके हृदय में विचार तरंग उठी-- 'मैंने वैताढयगिरि की दोनों श्रेणियाँ वश में कर लीं। संसार के बहत से सुख भोगे। किन्तु इसमें क्या ? पिछले पुण्यों का भोग ही तो किया। नया क्या उपार्जन किया? अव तो मुझे दीक्षा लेकर आत्मकल्याण कर लेना चाहिए।'
भामण्डल की यह विचार-तरंग चल ही रही थी कि आकाश से एक विद्युत तरंग चली और उस पर विद्युत्पात हो गया। मस्तक पर बिजली गिरते ही उसकी मृत्यु हुई और वह देवकुरु भोगभूमि में युगलिया उत्पन्न हुआ।
एक वार चैत्री पूर्णिमा के दिन वीर हनुमान मेरु पर्वत पर गये । वहाँ उन्हें सूर्य अस्त होता हुआ दिखाई दिया। उनका विचार-प्रवाह वहने लगा-'अहो ! जो उत्पन्न हुआ है उसका विनाश अवश्यम्भावी है। प्रतिदिन का ढलता हुआ सूर्य हमें संसार को क्षण-भंगुरता दिखाता