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सीताजी की अग्नि परीक्षा | ४६३
- हां, अब में अपने वास्तविक घर की ओर ही जा रही हूँ । -यह कहकर उसने अपने केश अपनी मुट्ठी से ही उखाड़े और श्रीराम के फैले हुए हाथों पर रख दिये ।
केशों पर दृष्टि पड़ते ही राम अचेत होकर गिर पड़े। इससे पहले कि वे सचेत होकर पुनः प्रेमपाश में बाँध लें सीताजी केवली के चरणों में जाकर प्रव्रजित हो गई। जयभूपण
विधिपूर्वक दीक्षा देकर केवली ने उसे सुप्रभा गणनायिका के परिवार में रख दिया ।
सीता तपस्यालीन हो गई ।
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-त्रिषष्टि शलाका ७६