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सीताजी की अग्नि-परीक्षा | ४६१ हुताशन की लाल-लाल लपलपाती जिह्वाएँ मानो उसे लीलने के लिए तत्पर ही थीं। लोगों ने देखा सती का शरीर कुन्दन की तरह
से सीता अग्नि में समा गई और अपना प्रतिरूप (नकली सीता) वहाँ रख दी । लक्ष्मण को भी इस रहस्य का पता नहीं लगा। सुनहु प्रिया व्रत रुचिर सुसीला । मैं कछु करवि ललित नर-लीला ॥ तुम्ह पावक महुँ करहुँ निवासा । जौं लगि करौं निसाचर नासा ।। जवहिं राम सव कहा बखानी । प्रभुपद धरि हिय अनल समानी ।। निज प्रतिबिंब राखि तहँ सीता । तैसेइ सील रूप सुविनीता ।। लछिमनहू यह मरम न जाना । जो कछु चरित रचा भगवाना ।।
. [अरण्य काण्ड, दोहा २४] • वह नकली सीता अग्नि में प्रवेश करके जल गई (यह अग्नि-परीक्षा लंका के वाहर खुले मैदान में हुई थी) और उसके साथ ही लौकिक कलंक भी जल गया । अग्नि ने स्वयं अपने हाथ से असली सीता श्रीराम को सौंप दी।
श्रीखण्ड सम पावक प्रवेस कियो सुमिरि प्रभु मैथिली । जय कोसलेस महेस वंदित चरम रति अति निर्मली । प्रतिविव अरु लौकिक कलंक प्रचण्ड पावक महुँ जरे। प्रभु चरित काहु न लखे नभ सुर सिद्ध मुनि देखहिं खरे ।। धरि रूप पावक पानि गहि श्री सत्य श्रुति जगविदित जो । जिमि छोर सागर इन्दिरा रामपि समी आनि सो ॥ सो राम वाम विभाग राजति रुचिर अति सोभा भली । नवनील नीरज निकट मानहु कनक पंकज की कली ॥
[लंका काण्ड, दोहा १०८] [इस प्रकार रावण द्वारा नकली सीता का हरण हुआ था असली का नहीं क्योंकि असली सीता तो अग्निदेव के पास थी; पंचवटी स्थित पर्णकुटी में नहीं।]
-सम्पादक