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४४४ | जैन कथामाला ( राम-कथा)
पृथु ने अपने मित्र पोतनपुर नरेश को बुलाया और वज्रजंघ ने अपने पुत्रों को । हठ करके लवण और अंकुश भी उनके साथ चले गये ।
राजा पृथु के मित्र और वज्रजंध के पुत्र तथा लवण और अंकुश के आने पर पुनः घोर संग्राम प्रारम्भ हुआ । पृथु की सेना ने वज्रजंघ की सेना को भंग कर दिया ।
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अपने मामा (वज्रसंघ) की हार होती देख लवण और अंकुश खून में उवाल आ गया । बहुत रोकने पर भी वे वीर भाई रुक न सके ।
दोनों भाई विभिन्न प्रकार के शस्त्र लेकर शत्रु दल पर टूट पड़े | केशरीसिंह के समान जिधर भी उनका मुख हो जाता शत्रु दल गीदड़ों के समान भागने लगता । अत्यल्प समय में ही उन्होंने पृथु की सेना को पृथ्वी पर सुला दिया । प्राण बचाकर राजा पृथु पीठ दिखाने लगा तो उन्होंने व्यंग्य किया -
- तुम तो जगविख्यात कुल वाले हो, हम अज्ञात वंश वालों के भय से क्यों भागते हो ?
राजा पृथु ने भयभीत होकर उत्तर दिया
- तुम्हारे पराक्रम ने ही तुम्हारे वंश का परिचय दे दिया ।
यह कहकर राजा पृथु ने सभी राजाओं के समक्ष वज्रसंघ से सन्धि कर ली । साथ ही यह वचन भी दिया कि 'मेरी पुत्री कनकमाला का पति अंकुश होगा ।'
राजा वज्रसंघ शिविर डालकर कितने ही दिन वहाँ रहा । उनके साथ अन्य राजा भी थे । पृथु भी उनके साथ ही ठहर गया । एक दिन वहाँ मुनि नारद आ गये । सत्कार करके राजा वज्रजंघ ने कहा