________________
भरत और कैकेयी की मोक्ष प्राप्ति | ४०७
को पहचानने का प्रयास कर रहे हों और गजेन्द्र की आँखें कृतज्ञता से -भरी थीं ।
महावतों ने राम की आज्ञा से हाथी को हस्तिशाला में ले जाकर बाँध दिया ।
संयोग से उसी समय कुलभूषण और देशभूषण केवलियों का अयोध्या में आगमन हुआ । 'उद्यान में केवली भगवान विराजमान हैं' यह समाचार प्राप्त होते ही राम-लक्ष्मण आदि परिकर और परिवार सहित उनकी वन्दना को गये । केवली के समवसरण तक उनको ले जाने का सौभाग्य भुवनालंकार हाथी को प्राप्त हुआ । रामभरत आदि तो केवली को वन्दन करके मनुष्यों के लिए नियत स्थान में जा विराजे और भुवनालंकार पशु-समाज में ।
-
केवली भगवान से राम ने अंजलि बाँधकर जिज्ञासा की -
- प्रभो ! यह भुवनालंकार हाथी भरत को देखकर ही शान्त क्यों हो गया ?
देशभूषण केवली ने बताया
इस अवसर्पिणी काल में भरतक्षेत्र के आदि तीर्थकर भगवान ऋषभदेव के साथ चार हजार राजाओं ने श्रामणी दीक्षा धारण की थी। प्रभु तो निराहार ही विहार करने लगे किन्तु अन्य लोग भूखप्यास की वेदना न सह सके और धर्म से च्युत हो गये । उन च्युत हुए श्रमणों में प्रह्लादन और सुप्रभ राजाओं के पुत्र चन्द्रोदय और सुरोदय भी थे । इसके पश्चात उन्होंने सुदीर्घकाल तक भव-भ्रमण किया ।
भव-भ्रमण करते-करते एक चार चन्द्रोदय तो गजपुर के राजा हरिमती और उसकी रानी चन्द्रलेखा का कुलंकर नाम का पुत्र हुआ और सुरोदय उसी नगर में विश्वभूति ब्राह्मण की पत्नी अग्निकुण्डा का पुत्र श्रुतिरति हुआ । अनुक्रम से कुलंकार राजा बना ।