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३६२ / जैन कथामाला (राम-कथा)
लक्ष्मण ने उच्च स्वर से सवको आश्वासन दिया
-सुभटो ! मेरी किसी से शत्रुता नहीं है। सभी निर्भय होकर अपने-अपने कर्तव्यों का पालन करो।
वासुदेव लक्ष्मण के इन वचनों से सभी आश्वस्त हुए । वानरवीरों में हर्ष की लहर दौड़ गई और वे उछल-कूदकर अपनी प्रसन्नता प्रगट करने लगे।
-त्रिषष्टि शलाका ७७ -उत्तर पुराण ६८५१६-६३१
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तव कृपालु राम ने एक विकराल वाण उसकी नाभि में मारा जी उसका सारा अमृत सोख गया । इसके पश्चात तीस बाणों से उसके दश सिर और बीस भुजाएं काट दी। रावण का धड़ प्रचण्ड वेग से राम की ओर दौड़ा तो एक वाण से उसके भी दो टुकड़े कर दिये । रावण का धड़ भी पृथ्वी पर गिर पड़ा। [लंकाकाण्ड दोहा, ८५-१०३]