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बहुरूपिणी विद्या की सिद्धि | ३८३ हरण किया था वैसे ही मैं तेरी रानी मन्दोदरी का हरण करके लिए जाता हूँ ।
यह कहकर उसने मन्दोदरी के केश खींचे । पीड़ा से विह्वल मन्दोदरी चीखने-चिल्लाने लगी । इसके करुण रुदन से अंगद का हृदय तो पसीज गया लेकिन दृढ़ निश्चयी रावण का ध्यान भंग न हुआ ।
उसी समय अपनी दिव्य आभा से आकाश को प्रकाशित करती हुई वहुरूपिणी विद्या प्रगट होकर बोली
- रावण ! मैं सिद्ध हो गई हूँ | मैं सम्पूर्ण विश्व को तेरे वश में कर सकती हूँ तो राम-लक्ष्मण किस खेत की मूली हैं ।
दशमुख ने उत्तर दिया
- इस समय मुझे तुमसे कोई काम नहीं है । जब तुम्हारा स्मरण करूं तब मेरी सहायता करना ।
विद्या तुरन्त अन्तर्धान हो गई और अंगद सहित समस्त वानर भी उसी समय उड़कर अपने शिविर में जा पहुँचे । -
-त्रिषष्टि शलाका ७७
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विशेष - तुलसीकृत में भी रावण द्वारा यज्ञ किये जाने का उल्लेख है । सुग्रीव ने राम को इसकी सूचना दी। श्रीराम ने हनुमान अंगद आदि वानरों को भेजा । वानर उसकी स्त्रियों को पकड़ लाये और केश पकड़कर घसीटने लगे । इस पर कुपित होकर रावण उठा और वानरों को मारने लगा । तव तक वानरों ने उसका यज्ञ नष्ट कर दिया ।
इस प्रकार रावण अपना यज्ञ पूरा नहीं कर सका । यह युद्ध का सातवाँ दिन था ।. [ लंका काण्ड, दोहा ८५ ]