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३८२ | जैन कथामाला (राम-कथा) दी-'आठ दिन तक सभी नगरवासी निष्ठापूर्वक अहिंसामूलक जैनधर्मका पालन करें।'
सुग्रीव के गुप्तचरों ने यह सूचना लाकर उसे दी । तुरन्त वह राम के पास पहुंचा और बोला--
-स्वामी ! रावण वहुरूपिणी विद्या सिद्ध कर रहा है । विद्या सिद्ध हो उससे पहले ही उसे वश में कर लिया जाय तो ठीक है अन्यथा वह दुनिवार हो जायगा।
राम ने हँसकर उत्तर दिया
-वानरराज ! ध्यानपरायण रावण पर कैसे शस्त्र प्रहार किया जा सकता है ? .
-किन्तु वाद में तो उसकी शक्ति बहत बढ़ जायगी । असम्भव ही हो जायगा उसका मरण । वहरूपिणी विद्या अत्यधिक शक्तिशाली होती है। . -धर्म से अधिक शक्ति किसी में नहीं है, किष्क्रिधानरेश ! हमारा मार्ग धर्म का है। हम अवश्य विजयी होंगे।
राम के इस उत्तर से सुग्रीव समझ गया कि ध्यान-मग्न . रावण के विरुद्ध न तो राम स्वयं कुछ करेंगे और न करने की. अनुमति देंगे। वह चुपचाप वहाँ से चला गया। किन्तु उसको चैन नहीं पड़ा। उसके संकेत पर अंगद रावण के ध्यान में विघ्न डालने लका जा पहुंचा। __ अंगद ने अनेक प्रकार के उपद्रव किये किन्तु रावण अपने ध्यान से तनिक भी विचलित न हुआ। ___अन्य कोई उपाय न देखकर अंगद रावण की पटरानी मन्दोदरी को उसके सामने पकड़ लाया और बोला
-अरे ! रावण तू किस पाखण्ड में लीन है । जैसे तूने सीता का