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संजीवनी बूटी | ३७१
विशल्या के पूर्वजन्म के तप का प्रभाव है । इसके स्नानजल के सिंचन से रोग, व्याधि, आदि तो शान्त होंगे ही; संसार की कोई भी शक्ति इसके पुण्य प्रभाव के समक्ष न ठहर सकेगी । शक्ति के आघात से हुआ घाव भी तुरन्त भर जायगा । इसके वाद पूछने पर मुनिश्री ने कहा- राम का छोटा भाई लक्ष्मण इसका पति होगा । मुनिराज के यह वचन सुनकर मुझे सन्तोष हुआ ।
राजा द्रोणमेघ यह कहकर चुप हो गया और मेरे ( भरत के ) अभिसिंचन करते ही समस्त नगर व्याधिमुक्त हो गया ।
विद्याधर आगे कहने लगा
- स्वामी ! उसी जल से सिंचन करके भरतजी ने मेरे प्राणों की रक्षा की । आप भी उसी जल को तुरन्त मँगवाइये जिससे लक्ष्मणजी के जीवन की रक्षा हो ।
यह वार्ता विभीषण भी बैठा सुन रहा था। वह तुरन्त वोल
उठा
- स्वामी जल्दी करिए । सूर्योदय होते ही अनर्थ हो जायगा और हम कुछ न कर सकेंगे ।
जितनी उतावली विभीषण आदि को थी उससे भी ज्यादा उतावले श्रीराम थे । उनके भातृस्नेह को कौन जान सकता था । लक्ष्मण तो मूच्छित, स्तब्ध पड़े थे और राम के हृदय में सुलगता हुआ दावानलउसके प्रचण्ड ताप से तड़पते हुए प्राणों की घोर वेदना को वही जानते थे । उन्होंने तत्काल ही भामंण्डल, हनुमान और अंगद को विशल्या का स्नानजल शीघ्र से शीघ्र लाने की आज्ञा दी ।
लक्ष्मण की प्राण-रक्षा हेतु चिन्तातुर तीनों सुभट अतिशीघ्रगामी विमान में बैठकर अयोध्या की ओर चल दिये ।
त्रिषष्टि शलाका ७७