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: १३: __ लक्ष्मण पर शक्ति-प्रहार
तीसरे दिन राक्षस-सेना का सेनापतित्व सँभाला स्वयं महाबली रावण ने। उसके अतुल बल-शौर्य के कारण राक्षस-वीरों का साहस बहुत बढ़ा हुआ था। दिन के प्रथम प्रहर में ही वानर-सेना भंग हो गई । राक्षस-वीरों के प्रहार आज कई गुने तीक्ष्ण और तीव्र थे।
भंग होती हुई वानर सेना की ढाल बनकर सुग्रीव आदि आये। सेना का साहस बैंधा और पुनः जमकर युद्ध करने लगी । वानरों के उखड़ते हुए पाँव जम गये। इस बार राक्षस-सुभट पीछे हटने लगे।
रावण स्वयं युद्ध में कूद पड़ा । उसके आते ही वानरों में त्राहित्राहि मच गयी । कोई भी सुभट टिक नहीं सका।
राम स्वयं युद्ध के लिए चलने लगे तो विभीषण ने कहा
-स्वामी ! आप यहीं रुकिये। मैं स्वयं रावण का प्रतीकार करने जाता हूँ।
इतना कहकर विभीषण वहाँ से चला और रावण के सम्मुख जा पहुँचा। उसे देखकर रावण का भातृ स्नेह उमड़ आया । वह बोला
-विभीषण ! तुम व्यर्थ ही काल के गाल में चले आये । वापिस लौट जाओ।