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युद्ध का दूसरा दिन | ३५० भीमण्डल और सुग्रीव की चिन्ता श्रीराम को भी वहुत थी। जव मनुष्य पर दुर्निवार विपत्ति पड़ती है तो वह अपने उपकारी और मित्रों को याद करता है। राम ने भी महालोचन देव का स्मरण किया । देव तुरन्त-उपकारी राम के पास आया। उसने उन्हें सिंहनिनादा विद्या, मूशल, हल और रथ दिये तथा लक्ष्मण को रथ,
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हे कपिश्रेष्ठ ! तुम्हारे कारण मेरा शाप मिट गया। यह मुनि नहीं है घोर निशाचर है और इसलिए राम-कथा कह रहा है कि तुम सूर्योदय से पहले औषधि लेकर न पहुँच सको।
यह सुनकर हनुमानजी ने लौटकर उस राक्षस को मार डाला ।
औषधियों से भरे पर्वत को लेकर लौटते समय जब हनुमान अयोध्या के ऊपर पहुंचे तो भरतजी ने इन्हें कोई राक्षस समझकर वाण मारकर गिरा लिया।
तव भरत को हनुमानजी के मुख से राम-रावण युद्ध का समाचार ज्ञात हुमा ।
वहां से चलकर हनुमानजी राम के शिविर में आये। सुषेण - की औपधि से लक्ष्मण सचेत हुए और हनुमान पुनः वैद्य सुषेण को वापिस लंका पहुंचा आये। यह सब घटनाएँ एक रात्रि में ही घट गईं।
. [लंका काण्ड, दोहा ५४-६१] १ महालोचन देव केवली कुलभूपण और देशभूपण का पिता था । वह अपने
पुत्रों के दीक्षा ले जाने के पश्चात मरकर सुपर्णकुमार (गरड़) जाति का देव हुआ था । श्रीराम-लक्ष्मण ने जो मुनिद्वय का उपसर्ग दूर किया था उससे प्रसन्न होकर उसने उन्हें सहायता का वचन दिया था।
(देखिये त्रिषष्टि शलाका ७.५, गुजराती अनुवाद पृष्ठ ६४) नोट-इसी देव ने श्रीराम को वलभद्र के योग्य चार और लक्ष्मण को वासुदेव के योग्य ६ दिव्यास्त्र दिये होंगे।
-सम्पादक