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३५६ / जैन कथामाला (राम-कथा) भामण्डल और सुग्रीव के पास वह किंकर्तव्यविमूढ़ सा खड़ा रह गया।
विशेष-(१) वाल्मीकि रामायण के अनुसार
युद्ध की पहली झपट में ही रात्रि के समय अदृश्य रहकर इन्द्रजित ने युद्ध किया और राम-लक्ष्मण दोनों भाइयों को बाणों से वींध कर नागपाश में जकड़ दिया। .
यहाँ राम का विलाप दिखाकर गरुड़जी के द्वारा उन्हें बन्धनमुक्त करने का वर्णन है । गरुड़जी वहाँ राम के प्रति मित्र भाव से आये थे।
युद्ध काण्ड (२) तुलसीकृत रामचरित में दूसरे ही दिन इन्द्रजित और लक्ष्मण के युद्ध का वर्णन है। यहीं इन्द्रजित वीरघातिनी शक्ति द्वारा लक्ष्मण को मूच्छित करता है।
[लंका काण्ड, दोहा ४५] युद्ध वन्द हो जाने के पश्चात रात्रि को राम करुण विलाप करते हैं । तव विभीषण की सलाह से लंका से सुषेण वैद्य को हनुमानजी उसके घर सहित उठा लाते हैं ।
सुषेण से नाम जानकर हनुमानजी औषधि लेने चल दिये । यह सव समाचार गुप्तचर ने रावण से कहे तो उसने हनुमान का मार्ग रोकने के लिए कालनेमि राक्षस को भेजा ।
कालनेमि ने हनुमानजी के मार्ग में ही एक सुन्दर आश्रम बनाया और राम कथा कहने लगा।
मार्ग की थकावट के कारण हनुमान को प्यास लग माई थी इसलिए उन्होंने उस मुनि से जल मांगा। मुनि ने अपना कमण्डल देकर समीप का सरोवर बता दिया। ज्योंही हनुमानजी ने पानी पीना चाहा त्योंही एक मकरी में उनका पैर पकड़ लिया । हनुमान ने उसका प्राणान्त कर दिया। तब उस मकरी ने दिव्य रूप धारण किया और हनुमान से कहने लगी