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________________ उपसर्ग शान्ति | ३२३ वीर हनुमान कुछ समय तक तो मुनियों की भक्ति करते रहे और फिर उन्हें श्रद्धापूर्वक नमन वन्दन करके लंका की ओर चल दिये। जैसे ही हनुमान लंका के पास पहुँचे-कालरात्रि के समान भयंकर शालिका विद्या ने ललकार कर कहा -अरे वानर ! तू कहाँ जाता है ? अनायास ही मेरा भोजन वन गया। ___ यह कह विद्या ने अपना मुख फाड़ दिया । ज्यों-ज्यों हनुमान बचने का प्रयास करते विद्या का मुख और भी विस्तृत होता जाता । अन्तः में जब निकलने का कोई मार्ग ही न रहा तो हनुमान ने हाथ में गदा लेकर उसके मुख में प्रवेश किया और जिस प्रकार वादलों को फाडकर सूर्य निकल आता है उसी प्रकार उसके उदर से निकल आये। विद्या पराजित हो गई। उस विद्या ने लंका के आस-पास किला वना रखा था। वह हनुमान जी ने अपने विद्यावल से कच्चे घडे के समान फोड़ दिया। किले का रक्षक वज्रमुख युद्ध में प्रवृत्त हुआ तो उसे भी उन्होंने मार गिराया। १ वाल्मीकि रामायण में भी हनुमान के महेन्द्रगिरि के शिखर से सागरसन्तरण के लिए उड़ने का उल्लेख है। [किष्किधाकाण्ड] २ वाल्मीकि रामायण में शालिका विद्या की बजाय सुरसा देवी उल्लेख किया गया है। देव, गन्धर्व, सिद्ध और महर्षियों ने नाग माता सुरसादेवी से कहा-तुम इन रामदूत हनुमान के बुद्धि वल की परीक्षा के लिए इनके. मार्ग में विघ्न डालो। सुरसा ने अपना आकार विशाल. राक्षसी का-सा बनाया और हनुमान का मार्ग रोक दिया। हनुमानजी ने अपना आकार अंगठे के समान छोटा-सा बनाया और उसके मुख में प्रवेश करके तुरन्त बाहर निकल आये।
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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