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३२२ | जैन कथामाला (राम-कथा)
विद्याधर अंगारक ने उपसर्ग करने के लिए यह दावानल प्रज्वलित किया था जिसे आपने वुझा दिया। __आपकी सहायता से छह मास में सिद्ध होने वाली मनोगामिनी विद्या क्षणभर में सिद्ध हो गई।
आपका हम पर वहुत उपकार है। इस प्रकार कहकर तीनों कन्याएँ चुप हो गई। हनुमान ने पूछा
-अव क्या आप लोग यह जानना चाहती हैं कि साहसगति विद्याधर का हनन किसने किया था ?
-अवश्य ! आप बता दें तो बड़ी कृपा होगी। -तो सुनिये-साहसगति को मारा था श्रीराम ने । -कहाँ हैं वे ? हनुमान ने बताया
-इस समय श्रीराम अपने अनुज लक्ष्मण सहित वानर-नरेश सुग्रीव की नगरी किष्किधा के वाहर उद्यान में ठहरे हैं। पाताल लंका का स्वामी विराध भी सेना सहित उनकी सेवा में प्रवृत्त है। यह सुनकर उन तीनों को बहुत हर्प हुआ। कहने लगीं-भद्र ! आप यह समाचार पिताजी को भी दे दीजिए।
-नहीं कुमारियो ! मैं उन्हीं श्रीराम के कार्य से लंका जा रहा हूँ। -हनुमान ने कहा।
तीनों कन्याओं ने यह समाचार अपने पिता गन्धर्वराज को जा सुनाया। ___ गन्धर्वराज तीनों पुत्रियों के साथ एक बड़ी सेना सजाकर राम से आ मिला।