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२६४ | जैन कशमःला (राम-कथा) निर्देशानुसार असली सुग्रीव ने पुनः ताल ठोकी और असली-नकली में मल्लयुद्ध होने लगा। कुछ देर तक तो राम भी संशय में रहे कि असली कौन है और नकली कौन ? किन्तु उन्हें एक उपाय सूझ गया। उन्होंने वज्रावर्त धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाकर धनुष्टंकार कर दिया। धनुष्टंकार के तीन और तीक्ष्ण घोष को प्रतारणी विद्या न सह सकी
और विद्याधर साहसगति के शरीर में से निकलकर भाग गई। विद्याधर अपने असली रूप में आ गया।
विशेष-(१) उत्तर पुराण में भी सुग्रीव राम-लक्ष्मण से भेंट करने जाता है किन्तु पाताल लंका में नहीं, चित्रकूट वन में और अकेला नही वरन् हनुमान के साथ । यहीं वह अपना और हनुमान का परिचय देता है । संक्षिप्त कथानक इस प्रकार है :. चित्रकूट वन में राम-लक्ष्मण सीता को वापिस लाने का उपाय सोच ही रहे थे कि उमी समय दो विद्याधर उनसे मिलने आये । राम ने उनका परिचय पूछा तो सुग्रीव कहने लगा
विजयार्द्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी में किलकिल नाम का नगर है। उसमें प्रसिद्ध विद्याधर राजा बलीन्द्र राज्य करता था। उसकी प्रियंगुसुन्दरी रानी से वाली और सुग्रीव दो पुत्र हुए। वाली मेरा बडा भाई है और मेरा नाम सुग्रीव है। पिता ने राज्य त्याग किया तो वाली को राज्य मिला और मुझे युवराज पद । लोभ के वशीभूत होकर बड़े भाई ने मुझे राज्य से बाहर निकाल दिया।
" हनुमान का परिचय देते हुए उसने बताया- यह मेरी वगल में बैठा हुआ विद्याधर भी विद्युत्कांता नगर के राजा प्रभंजन का पुत्र अमितवेग हैं। इसकी माता अंजना देवी है। यह तीनों प्रकार की विद्याओं का ज्ञाता और परम पराक्रमी है। एक वार विद्याधर कुमारों का समुदाय अपनी-अपनी विद्याओं का प्रदर्शन करने के लिए विजयार्द्ध पर्वत के शिखर पर गया । वहाँ पर इसने