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पाताल लंका की विजय | २८३ जटायु की मृत्यु समीप ही जानकर परोपकारी राम अपना दुःख कुछ समय के लिए भूल गये। उन्होंने परलोक के संबलस्वरूप नवकार मन्त्र उसे सुनाना प्रारम्भ कर दिया । जटायु के प्राण सन्तोषपूर्वक निकले और महामन्त्र के प्रभाव से वह माहेन्द्र स्वर्गलोक में देव हुआ।
अव श्रीराम को अपना शोक याद आया। वे इधर-उधर चारों ओर सीता की खोज करने लगे। सीता वहाँ होती तो मिलती, वह तो देवरमण उद्यान में अशोक वृक्ष के नीचे बैठी आँसू बहा रही थी। राम भी निराश होकर एक वृक्ष के नीचे आ बैठे। उन्हें विश्वास हो गया था कि किसी मायावी ने छलपूर्वक सीता का हरण कर लिया है।' वे पश्चात्ताप करने लगे-'हाय मैंने अपनी दुर्बुद्धि से सीता को अकेला वन में छोड़ा और अनुज लक्ष्मण को भी रण में अकेला ही छोड़ दिया। मेरी बुद्धि को न जाने क्या हो गया है।' शोक की अधिकता से रामचन्द्र मूच्छित हो गये।
अकेले लक्ष्मण खर के चौदह हजार विद्याधरों से युद्ध कर रहे थे । उसी समय खर का छोटा भाई त्रिशिरा उनके सामने आया और रण-कौशल दिखाने लगा। किन्तु लक्ष्मण का एक प्रहार भी न सह सका और धराशायी हो गया।
ने तोड़ दिया था । जटायु भी दूसरी ओर मरणासन्न दशा में पड़ा था। वहीं रावण का सारथि भी मरा पड़ा था। जटायु ने बता दिया कि रावण उसे हर ले गया है।
[वाल्मीकि रामायण, अरण्यकाण्ड] यहाँ रावण सीताजी को अंक में भरकर उठा ले गया था। पुप्पक विमान में विठाकर ले जाने का उल्लेख नहीं है।
[वाल्मीकि रामायण, अरण्यकाण्ड]