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पाताल लंका को विजय
जहाँ लक्ष्मण शत्रुओं से रणक्रीड़ा कर रहे थे वहीं राम शीघ्रता पहुँचे । अग्रज को देखते ही लक्ष्मण विस्मित होकर वोले—आर्य ! आप यहाँ कैसे ?
—तुम्हीं ने तो कष्टसूचक सिंहनाद करके बुलाया था । - नहीं तो ! मैंने तो कोई सिंहनाद नहीं किया ।
अव विस्मित होने की बारी राम की थी । क्या कहें, कुछ सूझ ही नहीं रहा था । लक्ष्मण ही पुनः
- सीताजी अकेली रह गई हैं । आप तुरन्त जाकर उनकी रक्षा
कीजिए ।
वोले
―
- किन्तु वह सिंहनाद किसने किया था ?
- कोई राक्षसी माया होगी । इसीलिए तो सीताजी के पास आपका जाना वहुत आवश्यक है | जल्दी कीजिए, तात !
राम उल्टे ही पैरों लौट पड़े । आकर देखा तो वहाँ भी सब उलट गया था । सीताजी का कहीं पता नहीं था । जटायु' अन्तिम साँसें गिन रहा था ।
१ जटायु तक पहुँचने में वन के मृगों ने सहायता दी । उनके संकेत पर ही राम-लक्ष्मण दक्षिण दिशा की ओर चले । वहाँ उन्हें युद्ध के चिह्न दिखाई दिये । एक ओर रावण का टूटा हुआ रथ दिखाई पड़ा जो जटायु