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सूर्यहास खड्ग | २६५ • शम्बूक पाताल लंका के शासक खर और उसकी रानी चन्द्रनखा का पुत्र था । माता-पिता ने बहुत समझाया कि इस दिव्य खड्ग की साधना मत करो। किन्तु वह माना नहीं और दण्डकारण्य जैसे भयानक वन में तपस्यारत हो गया।
बारह वर्प व्यतीत होने के चार दिन बाद सूर्यहास खड्ग प्रकट हुआ उसकी कठोर तपस्या के फलस्वरूप और लग गया हाथ लक्ष्मण के।
लक्ष्मण को प्राप्त हआ दिव्य खड्ग और शम्बूक को उसी खड्ग से मिली मृत्यु'—यह था भाग्य का विचित्र खेल । परिश्रम किसी का और फल मिला किसी और को।
१ शम्वूक वध श्रीराम के हाथों हुआ था । यह शूर्पणखा का पुत्र नहीं वरन्
एक शूद्र तपस्वी था । श्रीराम के राज्याभिषेक और शत्रुघ्न के लवणासुर वध के बाद की घटना है । घटना इस प्रकार हुई___एक वृद्ध ब्राह्मण अपने मृत पुत्र को लेकर राजद्वार पर आया और कहने लगा-'मैंने तो कोई पाप नहीं किया; परन्तु राजा राम के पाप के कारण ही मेरे पुत्र की मृत्यु हुई है ।'
यह सुनकर राम ने महर्षियों को बुलवाया और ब्राह्मण-पुत्र की अकाल मृत्यु का कारण जानना चाहा ।
वसिष्ठ, मार्कण्डेय, मौद्गल्य, वामदेव, काश्यप, कात्यायन, जाबालि, गौतम और नारद सभी महर्षियों ने एक स्वर में बताया-'कि आपके राज्य में कोई शूद्र तपस्या कर रहा है। उसकी साधना में फलस्वरूप इस ब्राह्मण-पुत्र की अकाल मृत्यु हुई है । क्योंकि सत्ययुग में ब्राह्मण, त्रेता में क्षत्रिय और ब्राह्मण, द्वापर में ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य को तप की अनुमति है किन्तु शूद्र को कभी नहीं । आप इस अधर्म को नष्ट कराइये। ब्राह्मग-पुत्र जीवित हो जायेगा ।